Conference

दो  दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी – गोस्वामी तुलसीदास : सामाजिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक परिप्रेक्ष में  
दिनांक: 17-18 अक्टूबर 2024  
स्थान:- अष्टवक्र सभागार, जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय, चित्रकूट।   

जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय एवं व्यंजना आर्ट एण्ड कल्चर सोसाइटी के संयुक्त तत्त्वावधान में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अंतरविषयी संगोष्ठी ‘गोस्वामी तुलसीदास: सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य में’ आयोजिन किया गाया। शुभारंभ जगद्गुरु पद्मविभूषण श्री रामभद्राचार्य जी के करकमलों द्वारा हुआ है इस आयोजन की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शिशिर पाण्डेय ने की। कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ एवं विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा सरस्वती वन्दना हुआ उसके पश्चात व्यंजना संस्था के कलाकारों जिसमें शाम्भवी शुक्ला, अभिलाषा भारद्वाज, विशाखा कौशिक, कीर्ति चौधरी, रंजना पाल, आरती श्रीवास्तव, प्रज्ञा पाल, शुभम पटवा (तबला), सूरज कुशवाहा (हारमोनियम), अजीत शर्मा (ढोलक) द्वारा रामलला नहछु की प्रस्तुति हुई। व्यंजना संस्था की सचिव डॉ मधु रानी शुक्ला ने संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए समस्त अतिथियों का स्वागत किया – मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित जगद्गुरु ने आशीर्वचन दिए। गुरु जी ने गोस्वामी तुलसीदास की रचना जानकी मंगल पाठ गाकर सुनाया व “मंगल भवन अमंगल हारी” के गायन से उद्घाटन सत्र कर समापन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो शिशिर पाण्डेय ने की। इसके साथ ही उद्घाटन सत्र सम्पन्न हुआ, इस सत्र का संचालन डॉ गोपाल कुमार मिश्र ने किया ।

उसके पश्चात तकनीकी सत्र प्रारंभ हुआ जिसमें श्री अशोक जमनानी एवं डॉ. कल्पना पाण्डेय ने तुलसीदास रचित रामचरितमानस का मानव मन पर प्रभाव पर प्रकाश डाला। रामाष्टकम् का पाठ सुश्री आर्यमा शुक्ला ने किया व सत्र की अध्यक्षता विदुषी विद्या बिन्दु सिंह (पद्मश्री) ने की । सत्र का संचालन डॉ. ज्योति सिन्हा ने किया। द्वितीय सत्र में वक्ता के रूप में डॉ. कल्पना दुबे, श्रीमती दिव्या दुबे ने गोस्वामी तुलसीदास के साहित्यिक पक्षों पर प्रकाश डाला, सत्र का संचालन डॉ. वेणु वनिता ने किया व अध्यक्षता डॉ. इला द्विवेदी ने की।

सायं को सांस्कृतिक सत्र में प्रख्यात ध्रुपद गायक पंडित विनोद द्विवेदी एवं श्री आयुष द्विवेदी जी ने राग भीमपलासी में निबद्ध रचना ‘राम नाम ध्यान धरो निसदिन’, सूलताल में निबद्ध रचना ‘मूरत बसी मन मे’ एवं राग मधुवंती में ‘भजमन तुलसीदास’, आपके साथ पखावज पर संगत श्री राज कुमार झा जी ने की। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संगीत विभाग में कार्यरत व प्रख्यात कलाकार डॉ. रामशंकर ने तुलसीदास को समर्पित ‘बंदौ चरण कमाल तुलसी के’ प्रदर्शित किया। तत्पश्चात पंडित छन्नुलाल जी के शिष्य व बनारस घराने के युवा कलाकार डॉ. इंद्रेश मिश्रा ने तुलसीदास पर आधारित रचनाएँ, केवट प्रसंग आदि प्रस्तुत किया। बसंत कन्या कॉलेज, वाराणसी में कार्यरत श्री हनुमान गुप्ता जी ने ‘तू दयाल दीन हौं’ एवं ‘भजमन राम चरण सुखदाई’ प्रस्तुत किया। डॉ ज्योति, श्रीमती तन्वी तिवारी एवं सूरज कुशवाहा ने तुलसीदास की रचना प्रस्तुत की।

 

अंतर्राष्ट्रीय सत्र में जापान से जुड़ी प्रो. हिरोको नागासाकि ने ‘तुलसीदास का छंद विधान’ विषय पर सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत कियाजापान से जुड़ीं डॉ तोमोका मुशिगा ने ‘ठुमक चलत रामचन्द्र’ की अद्भुत संगीतमयी प्रस्तुति दी एवं अंत में अमेरिका से जुड़ीं डॉ विजयश्री शर्मा ने राग पूरिया धानश्री और राग भैरव ‘ राम जपु राम जपु, राम जपु बाँवरे’, उज्बेकिस्तान से जुड़े डॉ मनीष मिश्र ने ‘तुलसीदास के पदों के साहित्यिक पक्ष’ पर प्रकाश डालते हुए सत्र का संचालन किया एवं सत्र की अध्यक्षता ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के संगीत विभाग की विभागाध्यक्षा प्रो लावण्य कीर्ति सिंह ‘काब्या’ ने कहा ‘हमें तुलसीदास को एवं उनकी रचनाओं को दोहराना आवश्यक है, अपनी लोक भाषा एवं संस्कृति से जुड़े रहने से ही हम उन्हें बचा पाएंगे’ और सोहर की धुनों से भी सभागार गुंजित किया। इसी प्रकार अगले साहित्यिक सत्र की अध्यक्षता डॉ किरण त्रिपाठी ने की व वक्ताओं के रूप में अन्य समेत डॉ श्रीकांत मिश्र, डॉ सतेन्द्र मिश्र, डॉ सुजीत सिंह उपस्थित थे व सत्र का संचालन डॉ प्रमिला मिश्रा ने किया। अयोध्या से पधारीं प्रो सुनीता द्विवेदी ने सत्र की अध्यक्षता की, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की डॉ दीप्ति विष्णु ने ‘वाल्मीकि व तुलसी के श्रीराम’ एवं श्रीराम स्तुति पर नृत्य प्रस्तुति दी। सत्र का संचालन डॉ इंदु शर्मा ने किया एवं ‘हिन्दी फिल्मों में तुलसीदास’ विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। सांस्कृतिक सत्र में गायन प्रस्तुति बालुकाबेला, सत्यम मिश्र, शक्ति सोनी, नन्दलाल यादव एवं कृष्ण कुमार तिवारी ने दी एवं समापन सत्र पद्मश्री से सम्मानित प्रख्यात ध्रुपद गायक पंडित ऋत्विक सानयाल ने तुलसीदास के पदों की प्रस्तुति की एवं पखावज पर संगत श्री आदित्य दीप ने की।

तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी – ‘भारतीय रंगमंच की संगीत परंपरा एवं प्रयोग’
दिनांक: 22-24 सितम्बर 2023 
स्थान:-भारतेन्दु नाट्य अकादेमी, लखनऊ 

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से एवं संस्कृति विभाग, उ० प्र० व भारतेन्दु नाट्य एकेडमी के सहयोग से व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारतीय रंगमंच की संगीत परंपरा एवं प्रयोग’ के उद्घाटन सत्र का शुभारंभ मुख्य अतिथि एवं अध्यक्ष के रूप में उपस्थित प्रो० पूर्णिमा पाण्डेय, प्रख्यात् लेखक श्री उदयन वाजपेई, प्रख्यात निर्देशक श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, पद्मश्री श्री शशिधर आचार्य, संगीत नाटक अकादेमी निदेशक श्री शोभित नाहर सहित अनेक गणमान्यजनों ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया।

प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली से आए प्रख्यात रंग निर्देशक श्री लोकेंद्र त्रिवेदी ने कहा कि “हमारी संगीत से नातेदारी वैदिक काल से ही शुरु हो गई थी। हमारी संस्कृति में 3000 साल पहले से ही दो धाराएं समाहित हो चुकी थी। एक थी लोक धर्मी धारा और दूसरी नाट्य- धर्मी धारा।” श्री त्रिवेदी ने ‘माच’ लोक विधा के संबंध में भी जानकारी दी । गोआ से आए डॉ. साईश देशपांडे ने ‘गांवडा जागोर’ नामक 2000 साल पुरानी लोक कला के संबंध में रोचक जानकारी दी, उन्होंने कहा कि “संगीत का रिश्ता ‘मैं’ से नहीं होता, बल्कि इसमें ‘हम’ का भाव होता है।” पंजाब से आई डॉ. स्मृति भारद्वाज ने पंजाबी लोक कला ‘नकल’ और ‘मिरासिस’ पर अपना व्याख्यान दिया, तो महाराष्ट्र से आई डॉ. श्वेता जोशी ने मराठी नाट्य संगीत परंपरा पर बहुत ही रोचक चर्चा की। इस सत्र का संचालन कर रही डॉ ज्योति सिन्हा ने पूर्वांचल की लोक कलाओं में संगीत के प्रयोग पर चर्चा की ।

श्री उदयन वाजपेई ने कहा- “अभिनय के हर अंग में स्वर-ताल का होना अनिवार्य है व नाट्य की शैय्या है ‘संगीत’।” श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने अनेक निर्देशकों के साथ किए गए रंगमंच में संगीत के प्रयोगों के अनुभवों को साझा किया। नाट्यशास्त्र के वृहद रूप की चर्चा वाराणसी से आए प्रख्यात रंगमंच निर्देशक डॉ. गौतम चटर्जी ने की व नाट्य के प्राकृत पर चर्चा सुश्री पत्रिका जैन ने की। ब्रज की रासलीला पर प्रकाश प्रो. सीमा वर्मा एवं डॉ ऊषा बनर्जी ने डाला। कूटियाट्टम नृत्य के सांगीतिक पक्ष पर श्री सूरज नाम्बिआर ने प्रकाश डाला व अभिनय से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। सराईकेला छाऊ के प्रसिद्ध विद्वान पद्मश्री शशिधर आचार्य ने रंगमंच संगीत के प्रायोगिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए विद्यार्थियों को रंगमंचीय संगीत पर अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया।

दूसरे दिन लोक नाट्यों में संगीत परंपरा, रंगमंच में संगीत विधान, रास एवं रहस्य में कत्थक तथा आधुनिक रंगमंच में संगीत परंपरा विषयों पर देश भर से आए विद्वानों व विशेषज्ञों ने विचार व्यक्त किए। इस संगोष्ठी के अन्य सत्रों में ललित सिंह पोखरियाल, व्योमेश शुक्ल, रेनु वर्मा, वीना सिंह, काजल घोष, अजय कुमार और विपिन कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सत्रों का संचालन डॉ शशि प्रभा तिवारी, डॉ. इंदु शर्मा और शांभवी शुक्ला के किया।

समापन दिवस पर नौटंकी पर पदमश्री पंडित रामदयाल शर्मा जी ने कहा की “नौटंकी का मूल रूप आज निश्चित रूप से विलुप्त हो रहा है।  नौटंकी का उद्देश्य मनोरंजन करना जितना है, उससे ज्यादा जनसंदेश देना है।” डॉ विद्या बिंदु सिंह ने कहा की “नक्टौरा में जब पहले के समय में पुरुष चले जाते थे, जो स्त्रियां घर पर रहती थीं वह गारी गाती थी, हास-व्यंग्य, गाना नाचना करती थी,उनका मानना था कि आसुरी शक्तियां चली जाती हैं, साथ ही साथ इन्हीं माध्यमों से वह अपने मन की व्यथाएं, अपने विचार भी कह जाती थीं।”

डॉ. धनंजय चोपड़ा ने कहा जब भाषा संवाद के लिए नहीं भी आई होगी, उसके पहले का संवाद का पहला माध्यम था कठपुतली रही होगी और उन्होंने अलग-अलग प्रदेशों के कठपुतलियों के बारे में विस्तार से बताया। डॉ के. सी. मालू ने राजस्थान के लोकनाट्य के बारे में बताया। श्री दयाराम ने ख्याल एवं श्री दिलीप भट्ट ने तमाशा का परिचय व उसके प्रयोग के बारे में बताया और सत्र का समापन प्रख्यात कलाकार श्री संजय उपाध्याय जी ने बिदेसिया लोकनाट्य के बारे में बताते हुए किया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल दिवेदी, डॉ धनंजय चोपड़ा उपस्थित रहे। आभार ज्ञापन डॉ मधु शुक्ला ने किया।

दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अंतर्विषयी संगोष्ठी- 'वैश्विक संदर्भ में संत मीरा'
दिनांक: 7-8 अक्टूबर 2022
स्थान: श्री चैतन्य प्रेम संस्थान, वृन्दावन

वृन्दावन, लोक परम्परा में मीरा के जो पद संकलित हैं, वे अप्रतिम भाव से हमें जोड़ते हैं। हम उनके पद गाते हैं तो बड़े ही सहजता से वृन्दावन हमारे सामने उपस्थित हो जाता है। उनके पदों में अध्यात्म और स्वानुभूति भरी हैं, उस पर ढेर सारी किताबें लिखी जा सकती हैं। यह बात पद्मभूषण विदुषी व राज्यसभा सदस्य डा. सोनल मानसिंह ने कहीं। डा. मानसिंह श्रीचैतन्य प्रेम संस्थान, वृन्दावन एवं व्यंजना आर्ट एण्ड कल्चर सोसायटी, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ’’संत मीरा’’ वैश्विक संदर्भ में ’’अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी’’ में मुख्य अतिथि के रूप में उद्घाटन वक्तव्य दे रही थीं। इस अवसर पर सम्पादक डा. मधुरानी शुक्ला एवं सह संपादक शाम्भवी शुक्ला द्वारा संपादित पुस्तक अनहद बाजै री…. का विमोचन पद्म विभूषण डा. सोनल मानसिंह, आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी, पद्मश्री स्वामी जी.सी. भारती, पद्मश्री विद्या बिन्दु सिंह द्वारा किया गया।
वृन्दावन के श्रीचैतन्य प्रेम संस्थान के प्रांगण में आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में बीज वक्तव्य देते हुए श्रीवत्स गोस्वामी ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति निरंतर गतिशील है और उसमें भी ब्रज संस्कृति की भव्यता के क्या कहने। मीरा इस भव्य संस्कृति की प्रतीक हैं, और नारी विमर्श व नारी सशक्तिकरण का नया रूप प्रस्तुत करती हुई हमारे साथ हमेशा बनी रहती है। श्रीवत्स गोस्वामी ने कहा कि जब ध्यान में कृष्ण यानी सत रचेगा-बसेगा तो अखण्ड गान फूटेगा ही। यही मीरा के साथ हुआ। उन्होंने जो रचा, जो गाया वह अखण्ड है और अनंत है।
प्रारम्भ में दो दिवसीय संगोष्ठी का प्रारम्भ दीप प्रज्जवलन और देवी तुलसी की आराधना के साथ हुआ। उद्घाटन सत्र का समापन प्रख्यात नर्तक विशाल कृष्णा के भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुति के साथ हुआ। सत्र का संचालन व आभार ज्ञापन व्यंजना आर्ट एण्ड कल्चर सोसायटी की सचिव व संगोष्ठी की संयोजन डा. मधुरानी शुक्ला ने किया।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र ’’वृन्दावन की मीरा’’ की अध्यक्षता डा. अच्युत लाल भट्ट ने की तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डा. धनंजय चोपड़ा व मीराबाई मंदिर, वृन्दावन के सेवायत प्रद्युम्न प्रताप महाराज ने विचार व्यक्त किए। दूसरा सत्र ’’गिरधर के रंग रांची’’ की अध्यक्षता पद्मश्री डा. विद्या बिन्दु सिंह ने की तथा पद्मश्री स्वामी सी.डी. भारती ने वक्तव्य दिया। तीसरा सत्र ’’लोक लाज तजी नाची’’ की अध्यक्षता पद्मश्री गीता महालिक ने किया तथा वक्तव्य प्रो. दीप्ति ओमचेरी भल्ला ने किया। पहले दिन का अंतिम सत्र ’’सांगीतिक प्रस्तुति’’ का था। ’’तेरी लीला गांसू’’ शीर्षक के अन्तर्गत आयोजित इस सत्र की अध्यक्षता पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने की तथा विशिष्ट अतिथि पं. विजय शंकर मिश्र एवं डा. राजेन्द्र कृष्ण अग्रवाल थे। प्रस्तुतियां देने वालों में डा. राम शंकर, प्रो. बांसवी मुखर्जी, डा. नम्रता मिश्रा, डा. सुजीत घोष, डा. विधि नागर शामिल हैं। नृत्य कुतप जयपुर के राजस्थान विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने प्रस्तुत किया, विभिन्न सत्रों का संचालन शाम्भवी शुक्ला, डा. निष्ठा शर्मा, डा. सुरेन्द्र कुमार, आदित्यनाथ तिवारी ने किया।
 

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से एवं संस्कृति विभाग, उ० प्र० व भारतेन्दु नाट्य एकेडमी के सहयोग से व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारतीय रंगमंच की संगीत परंपरा एवं प्रयोग’ के उद्घाटन सत्र का शुभारंभ मुख्य अतिथि एवं अध्यक्ष के रूप में उपस्थित प्रो० पूर्णिमा पाण्डेय, प्रख्यात् लेखक श्री उदयन वाजपेई, प्रख्यात निर्देशक श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, पद्मश्री श्री शशिधर आचार्य, संगीत नाटक अकादेमी निदेशक श्री शोभित नाहर सहित अनेक गणमान्यजनों ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया।

प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली से आए प्रख्यात रंग निर्देशक श्री लोकेंद्र त्रिवेदी ने कहा कि “हमारी संगीत से नातेदारी वैदिक काल से ही शुरु हो गई थी। हमारी संस्कृति में 3000 साल पहले से ही दो धाराएं समाहित हो चुकी थी। एक थी लोक धर्मी धारा और दूसरी नाट्य- धर्मी धारा।” श्री त्रिवेदी ने ‘माच’ लोक विधा के संबंध में भी जानकारी दी । गोआ से आए डॉ. साईश देशपांडे ने ‘गांवडा जागोर’ नामक 2000 साल पुरानी लोक कला के संबंध में रोचक जानकारी दी, उन्होंने कहा कि “संगीत का रिश्ता ‘मैं’ से नहीं होता, बल्कि इसमें ‘हम’ का भाव होता है।” पंजाब से आई डॉ. स्मृति भारद्वाज ने पंजाबी लोक कला ‘नकल’ और ‘मिरासिस’ पर अपना व्याख्यान दिया, तो महाराष्ट्र से आई डॉ. श्वेता जोशी ने मराठी नाट्य संगीत परंपरा पर बहुत ही रोचक चर्चा की। इस सत्र का संचालन कर रही डॉ ज्योति सिन्हा ने पूर्वांचल की लोक कलाओं में संगीत के प्रयोग पर चर्चा की ।

श्री उदयन वाजपेई ने कहा- “अभिनय के हर अंग में स्वर-ताल का होना अनिवार्य है व नाट्य की शैय्या है ‘संगीत’।” श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने अनेक निर्देशकों के साथ किए गए रंगमंच में संगीत के प्रयोगों के अनुभवों को साझा किया। नाट्यशास्त्र के वृहद रूप की चर्चा वाराणसी से आए प्रख्यात रंगमंच निर्देशक डॉ. गौतम चटर्जी ने की व नाट्य के प्राकृत पर चर्चा सुश्री पत्रिका जैन ने की। ब्रज की रासलीला पर प्रकाश प्रो. सीमा वर्मा एवं डॉ ऊषा बनर्जी ने डाला। कूटियाट्टम नृत्य के सांगीतिक पक्ष पर श्री सूरज नाम्बिआर ने प्रकाश डाला व अभिनय से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। सराईकेला छाऊ के प्रसिद्ध विद्वान पद्मश्री शशिधर आचार्य ने रंगमंच संगीत के प्रायोगिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए विद्यार्थियों को रंगमंचीय संगीत पर अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया।

दूसरे दिन लोक नाट्यों में संगीत परंपरा, रंगमंच में संगीत विधान, रास एवं रहस्य में कत्थक तथा आधुनिक रंगमंच में संगीत परंपरा विषयों पर देश भर से आए विद्वानों व विशेषज्ञों ने विचार व्यक्त किए। इस संगोष्ठी के अन्य सत्रों में ललित सिंह पोखरियाल, व्योमेश शुक्ल, रेनु वर्मा, वीना सिंह, काजल घोष, अजय कुमार और विपिन कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सत्रों का संचालन डॉ शशि प्रभा तिवारी, डॉ. इंदु शर्मा और शांभवी शुक्ला के किया।

समापन दिवस पर नौटंकी पर पदमश्री पंडित रामदयाल शर्मा जी ने कहा की “नौटंकी का मूल रूप आज निश्चित रूप से विलुप्त हो रहा है।  नौटंकी का उद्देश्य मनोरंजन करना जितना है, उससे ज्यादा जनसंदेश देना है।” डॉ विद्या बिंदु सिंह ने कहा की “नक्टौरा में जब पहले के समय में पुरुष चले जाते थे, जो स्त्रियां घर पर रहती थीं वह गारी गाती थी, हास-व्यंग्य, गाना नाचना करती थी,उनका मानना था कि आसुरी शक्तियां चली जाती हैं, साथ ही साथ इन्हीं माध्यमों से वह अपने मन की व्यथाएं, अपने विचार भी कह जाती थीं।”

डॉ. धनंजय चोपड़ा ने कहा जब भाषा संवाद के लिए नहीं भी आई होगी, उसके पहले का संवाद का पहला माध्यम था कठपुतली रही होगी और उन्होंने अलग-अलग प्रदेशों के कठपुतलियों के बारे में विस्तार से बताया। डॉ के. सी. मालू ने राजस्थान के लोकनाट्य के बारे में बताया। श्री दयाराम ने ख्याल एवं श्री दिलीप भट्ट ने तमाशा का परिचय व उसके प्रयोग के बारे में बताया और सत्र का समापन प्रख्यात कलाकार श्री संजय उपाध्याय जी ने बिदेसिया लोकनाट्य के बारे में बताते हुए किया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल दिवेदी, डॉ धनंजय चोपड़ा उपस्थित रहे। आभार ज्ञापन डॉ मधु शुक्ला ने किया।

दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अंतर्विषयी संगोष्ठी- 'वैश्विक संदर्भ में संत मीरा'
दिनांक: 7-8 अक्टूबर 2022
स्थान: श्री चैतन्य प्रेम संस्थान, वृन्दावन

वृन्दावन, लोक परम्परा में मीरा के जो पद संकलित हैं, वे अप्रतिम भाव से हमें जोड़ते हैं। हम उनके पद गाते हैं तो बड़े ही सहजता से वृन्दावन हमारे सामने उपस्थित हो जाता है। उनके पदों में अध्यात्म और स्वानुभूति भरी हैं, उस पर ढेर सारी किताबें लिखी जा सकती हैं। यह बात पद्मभूषण विदुषी व राज्यसभा सदस्य डा. सोनल मानसिंह ने कहीं। डा. मानसिंह श्रीचैतन्य प्रेम संस्थान, वृन्दावन एवं व्यंजना आर्ट एण्ड कल्चर सोसायटी, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ’’संत मीरा’’ वैश्विक संदर्भ में ’’अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी’’ में मुख्य अतिथि के रूप में उद्घाटन वक्तव्य दे रही थीं। इस अवसर पर सम्पादक डा. मधुरानी शुक्ला एवं सह संपादक शाम्भवी शुक्ला द्वारा संपादित पुस्तक अनहद बाजै री…. का विमोचन पद्म विभूषण डा. सोनल मानसिंह, आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी, पद्मश्री स्वामी जी.सी. भारती, पद्मश्री विद्या बिन्दु सिंह द्वारा किया गया।
वृन्दावन के श्रीचैतन्य प्रेम संस्थान के प्रांगण में आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में बीज वक्तव्य देते हुए श्रीवत्स गोस्वामी ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति निरंतर गतिशील है और उसमें भी ब्रज संस्कृति की भव्यता के क्या कहने। मीरा इस भव्य संस्कृति की प्रतीक हैं, और नारी विमर्श व नारी सशक्तिकरण का नया रूप प्रस्तुत करती हुई हमारे साथ हमेशा बनी रहती है। श्रीवत्स गोस्वामी ने कहा कि जब ध्यान में कृष्ण यानी सत रचेगा-बसेगा तो अखण्ड गान फूटेगा ही। यही मीरा के साथ हुआ। उन्होंने जो रचा, जो गाया वह अखण्ड है और अनंत है।
प्रारम्भ में दो दिवसीय संगोष्ठी का प्रारम्भ दीप प्रज्जवलन और देवी तुलसी की आराधना के साथ हुआ। उद्घाटन सत्र का समापन प्रख्यात नर्तक विशाल कृष्णा के भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुति के साथ हुआ। सत्र का संचालन व आभार ज्ञापन व्यंजना आर्ट एण्ड कल्चर सोसायटी की सचिव व संगोष्ठी की संयोजन डा. मधुरानी शुक्ला ने किया।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र ’’वृन्दावन की मीरा’’ की अध्यक्षता डा. अच्युत लाल भट्ट ने की तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डा. धनंजय चोपड़ा व मीराबाई मंदिर, वृन्दावन के सेवायत प्रद्युम्न प्रताप महाराज ने विचार व्यक्त किए। दूसरा सत्र ’’गिरधर के रंग रांची’’ की अध्यक्षता पद्मश्री डा. विद्या बिन्दु सिंह ने की तथा पद्मश्री स्वामी सी.डी. भारती ने वक्तव्य दिया। तीसरा सत्र ’’लोक लाज तजी नाची’’ की अध्यक्षता पद्मश्री गीता महालिक ने किया तथा वक्तव्य प्रो. दीप्ति ओमचेरी भल्ला ने किया। पहले दिन का अंतिम सत्र ’’सांगीतिक प्रस्तुति’’ का था। ’’तेरी लीला गांसू’’ शीर्षक के अन्तर्गत आयोजित इस सत्र की अध्यक्षता पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने की तथा विशिष्ट अतिथि पं. विजय शंकर मिश्र एवं डा. राजेन्द्र कृष्ण अग्रवाल थे। प्रस्तुतियां देने वालों में डा. राम शंकर, प्रो. बांसवी मुखर्जी, डा. नम्रता मिश्रा, डा. सुजीत घोष, डा. विधि नागर शामिल हैं। नृत्य कुतप जयपुर के राजस्थान विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने प्रस्तुत किया, विभिन्न सत्रों का संचालन शाम्भवी शुक्ला, डा. निष्ठा शर्मा, डा. सुरेन्द्र कुमार, आदित्यनाथ तिवारी ने किया।
 

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से एवं संस्कृति विभाग, उ० प्र० व भारतेन्दु नाट्य एकेडमी के सहयोग से व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारतीय रंगमंच की संगीत परंपरा एवं प्रयोग’ के उद्घाटन सत्र का शुभारंभ मुख्य अतिथि एवं अध्यक्ष के रूप में उपस्थित प्रो० पूर्णिमा पाण्डेय, प्रख्यात् लेखक श्री उदयन वाजपेई, प्रख्यात निर्देशक श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, पद्मश्री श्री शशिधर आचार्य, संगीत नाटक अकादेमी निदेशक श्री शोभित नाहर सहित अनेक गणमान्यजनों ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया।

प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली से आए प्रख्यात रंग निर्देशक श्री लोकेंद्र त्रिवेदी ने कहा कि “हमारी संगीत से नातेदारी वैदिक काल से ही शुरु हो गई थी। हमारी संस्कृति में 3000 साल पहले से ही दो धाराएं समाहित हो चुकी थी। एक थी लोक धर्मी धारा और दूसरी नाट्य- धर्मी धारा।” श्री त्रिवेदी ने ‘माच’ लोक विधा के संबंध में भी जानकारी दी । गोआ से आए डॉ. साईश देशपांडे ने ‘गांवडा जागोर’ नामक 2000 साल पुरानी लोक कला के संबंध में रोचक जानकारी दी, उन्होंने कहा कि “संगीत का रिश्ता ‘मैं’ से नहीं होता, बल्कि इसमें ‘हम’ का भाव होता है।” पंजाब से आई डॉ. स्मृति भारद्वाज ने पंजाबी लोक कला ‘नकल’ और ‘मिरासिस’ पर अपना व्याख्यान दिया, तो महाराष्ट्र से आई डॉ. श्वेता जोशी ने मराठी नाट्य संगीत परंपरा पर बहुत ही रोचक चर्चा की। इस सत्र का संचालन कर रही डॉ ज्योति सिन्हा ने पूर्वांचल की लोक कलाओं में संगीत के प्रयोग पर चर्चा की ।

श्री उदयन वाजपेई ने कहा- “अभिनय के हर अंग में स्वर-ताल का होना अनिवार्य है व नाट्य की शैय्या है ‘संगीत’।” श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने अनेक निर्देशकों के साथ किए गए रंगमंच में संगीत के प्रयोगों के अनुभवों को साझा किया। नाट्यशास्त्र के वृहद रूप की चर्चा वाराणसी से आए प्रख्यात रंगमंच निर्देशक डॉ. गौतम चटर्जी ने की व नाट्य के प्राकृत पर चर्चा सुश्री पत्रिका जैन ने की। ब्रज की रासलीला पर प्रकाश प्रो. सीमा वर्मा एवं डॉ ऊषा बनर्जी ने डाला। कूटियाट्टम नृत्य के सांगीतिक पक्ष पर श्री सूरज नाम्बिआर ने प्रकाश डाला व अभिनय से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। सराईकेला छाऊ के प्रसिद्ध विद्वान पद्मश्री शशिधर आचार्य ने रंगमंच संगीत के प्रायोगिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए विद्यार्थियों को रंगमंचीय संगीत पर अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया।

दूसरे दिन लोक नाट्यों में संगीत परंपरा, रंगमंच में संगीत विधान, रास एवं रहस्य में कत्थक तथा आधुनिक रंगमंच में संगीत परंपरा विषयों पर देश भर से आए विद्वानों व विशेषज्ञों ने विचार व्यक्त किए। इस संगोष्ठी के अन्य सत्रों में ललित सिंह पोखरियाल, व्योमेश शुक्ल, रेनु वर्मा, वीना सिंह, काजल घोष, अजय कुमार और विपिन कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सत्रों का संचालन डॉ शशि प्रभा तिवारी, डॉ. इंदु शर्मा और शांभवी शुक्ला के किया।

समापन दिवस पर नौटंकी पर पदमश्री पंडित रामदयाल शर्मा जी ने कहा की “नौटंकी का मूल रूप आज निश्चित रूप से विलुप्त हो रहा है।  नौटंकी का उद्देश्य मनोरंजन करना जितना है, उससे ज्यादा जनसंदेश देना है।” डॉ विद्या बिंदु सिंह ने कहा की “नक्टौरा में जब पहले के समय में पुरुष चले जाते थे, जो स्त्रियां घर पर रहती थीं वह गारी गाती थी, हास-व्यंग्य, गाना नाचना करती थी,उनका मानना था कि आसुरी शक्तियां चली जाती हैं, साथ ही साथ इन्हीं माध्यमों से वह अपने मन की व्यथाएं, अपने विचार भी कह जाती थीं।”

डॉ. धनंजय चोपड़ा ने कहा जब भाषा संवाद के लिए नहीं भी आई होगी, उसके पहले का संवाद का पहला माध्यम था कठपुतली रही होगी और उन्होंने अलग-अलग प्रदेशों के कठपुतलियों के बारे में विस्तार से बताया। डॉ के. सी. मालू ने राजस्थान के लोकनाट्य के बारे में बताया। श्री दयाराम ने ख्याल एवं श्री दिलीप भट्ट ने तमाशा का परिचय व उसके प्रयोग के बारे में बताया और सत्र का समापन प्रख्यात कलाकार श्री संजय उपाध्याय जी ने बिदेसिया लोकनाट्य के बारे में बताते हुए किया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल दिवेदी, डॉ धनंजय चोपड़ा उपस्थित रहे। आभार ज्ञापन डॉ मधु शुक्ला ने किया।

दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अंतर्विषयी संगोष्ठी- 'वैश्विक संदर्भ में संत मीरा'
दिनांक: 7-8 अक्टूबर 2022
स्थान: श्री चैतन्य प्रेम संस्थान, वृन्दावन

वृन्दावन, लोक परम्परा में मीरा के जो पद संकलित हैं, वे अप्रतिम भाव से हमें जोड़ते हैं। हम उनके पद गाते हैं तो बड़े ही सहजता से वृन्दावन हमारे सामने उपस्थित हो जाता है। उनके पदों में अध्यात्म और स्वानुभूति भरी हैं, उस पर ढेर सारी किताबें लिखी जा सकती हैं। यह बात पद्मभूषण विदुषी व राज्यसभा सदस्य डा. सोनल मानसिंह ने कहीं। डा. मानसिंह श्रीचैतन्य प्रेम संस्थान, वृन्दावन एवं व्यंजना आर्ट एण्ड कल्चर सोसायटी, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ’’संत मीरा’’ वैश्विक संदर्भ में ’’अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी’’ में मुख्य अतिथि के रूप में उद्घाटन वक्तव्य दे रही थीं। इस अवसर पर सम्पादक डा. मधुरानी शुक्ला एवं सह संपादक शाम्भवी शुक्ला द्वारा संपादित पुस्तक अनहद बाजै री…. का विमोचन पद्म विभूषण डा. सोनल मानसिंह, आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी, पद्मश्री स्वामी जी.सी. भारती, पद्मश्री विद्या बिन्दु सिंह द्वारा किया गया।
वृन्दावन के श्रीचैतन्य प्रेम संस्थान के प्रांगण में आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में बीज वक्तव्य देते हुए श्रीवत्स गोस्वामी ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति निरंतर गतिशील है और उसमें भी ब्रज संस्कृति की भव्यता के क्या कहने। मीरा इस भव्य संस्कृति की प्रतीक हैं, और नारी विमर्श व नारी सशक्तिकरण का नया रूप प्रस्तुत करती हुई हमारे साथ हमेशा बनी रहती है। श्रीवत्स गोस्वामी ने कहा कि जब ध्यान में कृष्ण यानी सत रचेगा-बसेगा तो अखण्ड गान फूटेगा ही। यही मीरा के साथ हुआ। उन्होंने जो रचा, जो गाया वह अखण्ड है और अनंत है।
प्रारम्भ में दो दिवसीय संगोष्ठी का प्रारम्भ दीप प्रज्जवलन और देवी तुलसी की आराधना के साथ हुआ। उद्घाटन सत्र का समापन प्रख्यात नर्तक विशाल कृष्णा के भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुति के साथ हुआ। सत्र का संचालन व आभार ज्ञापन व्यंजना आर्ट एण्ड कल्चर सोसायटी की सचिव व संगोष्ठी की संयोजन डा. मधुरानी शुक्ला ने किया।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र ’’वृन्दावन की मीरा’’ की अध्यक्षता डा. अच्युत लाल भट्ट ने की तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डा. धनंजय चोपड़ा व मीराबाई मंदिर, वृन्दावन के सेवायत प्रद्युम्न प्रताप महाराज ने विचार व्यक्त किए। दूसरा सत्र ’’गिरधर के रंग रांची’’ की अध्यक्षता पद्मश्री डा. विद्या बिन्दु सिंह ने की तथा पद्मश्री स्वामी सी.डी. भारती ने वक्तव्य दिया। तीसरा सत्र ’’लोक लाज तजी नाची’’ की अध्यक्षता पद्मश्री गीता महालिक ने किया तथा वक्तव्य प्रो. दीप्ति ओमचेरी भल्ला ने किया। पहले दिन का अंतिम सत्र ’’सांगीतिक प्रस्तुति’’ का था। ’’तेरी लीला गांसू’’ शीर्षक के अन्तर्गत आयोजित इस सत्र की अध्यक्षता पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने की तथा विशिष्ट अतिथि पं. विजय शंकर मिश्र एवं डा. राजेन्द्र कृष्ण अग्रवाल थे। प्रस्तुतियां देने वालों में डा. राम शंकर, प्रो. बांसवी मुखर्जी, डा. नम्रता मिश्रा, डा. सुजीत घोष, डा. विधि नागर शामिल हैं। नृत्य कुतप जयपुर के राजस्थान विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने प्रस्तुत किया, विभिन्न सत्रों का संचालन शाम्भवी शुक्ला, डा. निष्ठा शर्मा, डा. सुरेन्द्र कुमार, आदित्यनाथ तिवारी ने किया।
 

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से एवं संस्कृति विभाग, उ० प्र० व भारतेन्दु नाट्य एकेडमी के सहयोग से व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारतीय रंगमंच की संगीत परंपरा एवं प्रयोग’ के उद्घाटन सत्र का शुभारंभ मुख्य अतिथि एवं अध्यक्ष के रूप में उपस्थित प्रो० पूर्णिमा पाण्डेय, प्रख्यात् लेखक श्री उदयन वाजपेई, प्रख्यात निर्देशक श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, पद्मश्री श्री शशिधर आचार्य, संगीत नाटक अकादेमी निदेशक श्री शोभित नाहर सहित अनेक गणमान्यजनों ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया।

प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली से आए प्रख्यात रंग निर्देशक श्री लोकेंद्र त्रिवेदी ने कहा कि “हमारी संगीत से नातेदारी वैदिक काल से ही शुरु हो गई थी। हमारी संस्कृति में 3000 साल पहले से ही दो धाराएं समाहित हो चुकी थी। एक थी लोक धर्मी धारा और दूसरी नाट्य- धर्मी धारा।” श्री त्रिवेदी ने ‘माच’ लोक विधा के संबंध में भी जानकारी दी । गोआ से आए डॉ. साईश देशपांडे ने ‘गांवडा जागोर’ नामक 2000 साल पुरानी लोक कला के संबंध में रोचक जानकारी दी, उन्होंने कहा कि “संगीत का रिश्ता ‘मैं’ से नहीं होता, बल्कि इसमें ‘हम’ का भाव होता है।” पंजाब से आई डॉ. स्मृति भारद्वाज ने पंजाबी लोक कला ‘नकल’ और ‘मिरासिस’ पर अपना व्याख्यान दिया, तो महाराष्ट्र से आई डॉ. श्वेता जोशी ने मराठी नाट्य संगीत परंपरा पर बहुत ही रोचक चर्चा की। इस सत्र का संचालन कर रही डॉ ज्योति सिन्हा ने पूर्वांचल की लोक कलाओं में संगीत के प्रयोग पर चर्चा की ।

श्री उदयन वाजपेई ने कहा- “अभिनय के हर अंग में स्वर-ताल का होना अनिवार्य है व नाट्य की शैय्या है ‘संगीत’।” श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने अनेक निर्देशकों के साथ किए गए रंगमंच में संगीत के प्रयोगों के अनुभवों को साझा किया। नाट्यशास्त्र के वृहद रूप की चर्चा वाराणसी से आए प्रख्यात रंगमंच निर्देशक डॉ. गौतम चटर्जी ने की व नाट्य के प्राकृत पर चर्चा सुश्री पत्रिका जैन ने की। ब्रज की रासलीला पर प्रकाश प्रो. सीमा वर्मा एवं डॉ ऊषा बनर्जी ने डाला। कूटियाट्टम नृत्य के सांगीतिक पक्ष पर श्री सूरज नाम्बिआर ने प्रकाश डाला व अभिनय से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। सराईकेला छाऊ के प्रसिद्ध विद्वान पद्मश्री शशिधर आचार्य ने रंगमंच संगीत के प्रायोगिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए विद्यार्थियों को रंगमंचीय संगीत पर अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया।

दूसरे दिन लोक नाट्यों में संगीत परंपरा, रंगमंच में संगीत विधान, रास एवं रहस्य में कत्थक तथा आधुनिक रंगमंच में संगीत परंपरा विषयों पर देश भर से आए विद्वानों व विशेषज्ञों ने विचार व्यक्त किए। इस संगोष्ठी के अन्य सत्रों में ललित सिंह पोखरियाल, व्योमेश शुक्ल, रेनु वर्मा, वीना सिंह, काजल घोष, अजय कुमार और विपिन कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सत्रों का संचालन डॉ शशि प्रभा तिवारी, डॉ. इंदु शर्मा और शांभवी शुक्ला के किया।

समापन दिवस पर नौटंकी पर पदमश्री पंडित रामदयाल शर्मा जी ने कहा की “नौटंकी का मूल रूप आज निश्चित रूप से विलुप्त हो रहा है।  नौटंकी का उद्देश्य मनोरंजन करना जितना है, उससे ज्यादा जनसंदेश देना है।” डॉ विद्या बिंदु सिंह ने कहा की “नक्टौरा में जब पहले के समय में पुरुष चले जाते थे, जो स्त्रियां घर पर रहती थीं वह गारी गाती थी, हास-व्यंग्य, गाना नाचना करती थी,उनका मानना था कि आसुरी शक्तियां चली जाती हैं, साथ ही साथ इन्हीं माध्यमों से वह अपने मन की व्यथाएं, अपने विचार भी कह जाती थीं।”

डॉ. धनंजय चोपड़ा ने कहा जब भाषा संवाद के लिए नहीं भी आई होगी, उसके पहले का संवाद का पहला माध्यम था कठपुतली रही होगी और उन्होंने अलग-अलग प्रदेशों के कठपुतलियों के बारे में विस्तार से बताया। डॉ के. सी. मालू ने राजस्थान के लोकनाट्य के बारे में बताया। श्री दयाराम ने ख्याल एवं श्री दिलीप भट्ट ने तमाशा का परिचय व उसके प्रयोग के बारे में बताया और सत्र का समापन प्रख्यात कलाकार श्री संजय उपाध्याय जी ने बिदेसिया लोकनाट्य के बारे में बताते हुए किया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल दिवेदी, डॉ धनंजय चोपड़ा उपस्थित रहे। आभार ज्ञापन डॉ मधु शुक्ला ने किया।

दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अंतर्विषयी संगोष्ठी- 'वैश्विक संदर्भ में संत मीरा'
दिनांक: 7-8 अक्टूबर 2022
स्थान: श्री चैतन्य प्रेम संस्थान, वृन्दावन

वृन्दावन, लोक परम्परा में मीरा के जो पद संकलित हैं, वे अप्रतिम भाव से हमें जोड़ते हैं। हम उनके पद गाते हैं तो बड़े ही सहजता से वृन्दावन हमारे सामने उपस्थित हो जाता है। उनके पदों में अध्यात्म और स्वानुभूति भरी हैं, उस पर ढेर सारी किताबें लिखी जा सकती हैं। यह बात पद्मभूषण विदुषी व राज्यसभा सदस्य डा. सोनल मानसिंह ने कहीं। डा. मानसिंह श्रीचैतन्य प्रेम संस्थान, वृन्दावन एवं व्यंजना आर्ट एण्ड कल्चर सोसायटी, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ’’संत मीरा’’ वैश्विक संदर्भ में ’’अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी’’ में मुख्य अतिथि के रूप में उद्घाटन वक्तव्य दे रही थीं। इस अवसर पर सम्पादक डा. मधुरानी शुक्ला एवं सह संपादक शाम्भवी शुक्ला द्वारा संपादित पुस्तक अनहद बाजै री…. का विमोचन पद्म विभूषण डा. सोनल मानसिंह, आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी, पद्मश्री स्वामी जी.सी. भारती, पद्मश्री विद्या बिन्दु सिंह द्वारा किया गया।
वृन्दावन के श्रीचैतन्य प्रेम संस्थान के प्रांगण में आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में बीज वक्तव्य देते हुए श्रीवत्स गोस्वामी ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति निरंतर गतिशील है और उसमें भी ब्रज संस्कृति की भव्यता के क्या कहने। मीरा इस भव्य संस्कृति की प्रतीक हैं, और नारी विमर्श व नारी सशक्तिकरण का नया रूप प्रस्तुत करती हुई हमारे साथ हमेशा बनी रहती है। श्रीवत्स गोस्वामी ने कहा कि जब ध्यान में कृष्ण यानी सत रचेगा-बसेगा तो अखण्ड गान फूटेगा ही। यही मीरा के साथ हुआ। उन्होंने जो रचा, जो गाया वह अखण्ड है और अनंत है।
प्रारम्भ में दो दिवसीय संगोष्ठी का प्रारम्भ दीप प्रज्जवलन और देवी तुलसी की आराधना के साथ हुआ। उद्घाटन सत्र का समापन प्रख्यात नर्तक विशाल कृष्णा के भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुति के साथ हुआ। सत्र का संचालन व आभार ज्ञापन व्यंजना आर्ट एण्ड कल्चर सोसायटी की सचिव व संगोष्ठी की संयोजन डा. मधुरानी शुक्ला ने किया।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र ’’वृन्दावन की मीरा’’ की अध्यक्षता डा. अच्युत लाल भट्ट ने की तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डा. धनंजय चोपड़ा व मीराबाई मंदिर, वृन्दावन के सेवायत प्रद्युम्न प्रताप महाराज ने विचार व्यक्त किए। दूसरा सत्र ’’गिरधर के रंग रांची’’ की अध्यक्षता पद्मश्री डा. विद्या बिन्दु सिंह ने की तथा पद्मश्री स्वामी सी.डी. भारती ने वक्तव्य दिया। तीसरा सत्र ’’लोक लाज तजी नाची’’ की अध्यक्षता पद्मश्री गीता महालिक ने किया तथा वक्तव्य प्रो. दीप्ति ओमचेरी भल्ला ने किया। पहले दिन का अंतिम सत्र ’’सांगीतिक प्रस्तुति’’ का था। ’’तेरी लीला गांसू’’ शीर्षक के अन्तर्गत आयोजित इस सत्र की अध्यक्षता पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने की तथा विशिष्ट अतिथि पं. विजय शंकर मिश्र एवं डा. राजेन्द्र कृष्ण अग्रवाल थे। प्रस्तुतियां देने वालों में डा. राम शंकर, प्रो. बांसवी मुखर्जी, डा. नम्रता मिश्रा, डा. सुजीत घोष, डा. विधि नागर शामिल हैं। नृत्य कुतप जयपुर के राजस्थान विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने प्रस्तुत किया, विभिन्न सत्रों का संचालन शाम्भवी शुक्ला, डा. निष्ठा शर्मा, डा. सुरेन्द्र कुमार, आदित्यनाथ तिवारी ने किया।
 

अंतर्राष्ट्रीय अंतरविषयी संगोष्ठी
“कबीर: सामाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिपेक्ष्य”
स्थान: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तरप्रदेश
दिनांक ३०-३१ मार्च २०२२

मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र सभागार, मालवीय हेरिटेज कॉम्प्लेक्स, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में ‘सामाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिपेक्ष्य में अंतर्राष्ट्रीय अंतरविषयी संगोष्ठी आयोजित हुई। जिसमें न्यायमूर्ति श्रीयुत गिरिधर मालवीय, कुलाधिपति, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, मुख्य अतिथि रहे। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रख्यात कबीर गायक पद्मश्री प्रह्लाद सिंह तिपानिया एवं प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी, कुलाधिपति, म.ग.अं.हि.वि.वि. वर्धा, सारस्वत अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। प्रो रेवती साकलकर ने कबीर गायन प्रस्तुति दी एवं संचालन प्रो. लावण्य कीर्ति सिंह ‘काब्या’ ने किया।  पद्मश्री प्रो. सुधीर कुमार जैन, कुलपति का.हि.वि.वि. की अध्यक्षता में संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र सम्पन्न हुआ। संगोष्ठी का प्रथम सत्र ‘कबीर समग्र’ प्रो. सदानंद शाही की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ जिसमें प्रो. बीना शर्मा, निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। प्रथम सत्र में डॉ. हरीश दास, डॉ. भागीरथी दास एवं प्रो. प्रभाकर सिंह का व्यक्तव्य प्राप्त हुआ, सत्र का संचालन डॉ. अमित कुमार पाण्डेय द्वारा हुआ। द्वितीय सत्र ‘कहत कबीर’ प्रो चन्द्रकला त्रिपाठी की अध्यक्षता में, सुश्री तनुश्री कश्यप के गायन एवं डॉ मनीष मिश्रा के संचालन में सम्पन्न हुआ, प्रो मनोज कुमार सिंह सत्र के विशिष्ट अतिथि एवं डॉ शाहिद अली, वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। सांगीतिक सत्र ‘अनहद बाजे री’ पण्डित कामेश्वरनाथ मिश्र की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। सत्र के विशिष्ट अतिथि के रूप में अध्यक्ष, उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी, पद्मश्री पण्डित राजेश्वर आचार्य उपस्थित रहे। सत्र में शिल्पायन संस्था के कलाकार सोम्या चक्रवर्ती, रूपम बासक, डालिया मुखर्जी (वाराणसी), प्रो. निशा झा (भागलपुर), प्रो. संगीता पण्डित (वाराणसी) एवं डॉ श्वेता जयसवाल (वाराणसी), श्री देवेन्द्र दास एवं साथी (वाराणसी), डॉ. रक्षा सिंह (दिल्ली), डॉ. भावना ग्रोवर (मेरठ) द्वारा सांगीतिक प्रस्तुतियाँ की गईं। डॉ. विधि नागर द्वारा ‘कबीर द वीवर’ नामक नृत्य नाटिकाकी प्रस्तुति की गई। सत्र का संचालन सुश्री अंकिता खत्री द्वारा हुआ। 

द्वितीय दिवस, तृतीय सत्र ‘विश्वव्यापी कबीर’ प्रो. शारदा वेलंकर की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ विशिष्ट अतिथि के रूप में श्रीमाति अनुराधा गोयल उपस्थित रहीं। डॉ. मधुमिता भट्टाचार्य (वाराणसी) एवं डॉ. विजयश्री शर्मा (यूएसए) द्वारा कबीर गायन प्रस्तुति एवं वक्ता के रूप में श्रीमती रूपा न्यौपाने (नेपाल), सुश्री फरहत रिजवी (यूएसए), जॉन केडवेल (यूएसए), अफ़रोज़ ताज (यूएसए), एवं अशुतोष कुमार (चीन) से उपस्थित रहे। सत्र का संचालन प्रो. सीमा वर्मा ने किया। चतुर्थ सत्र ‘संगीत मे कबीर’ डॉ। गौतम चैटर्जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, सत्र के विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री के. सी. मालू उपस्थित रहे। सत्र में पं. विजय सब्याल एवं डॉ. अलंकार सिंह द्वारा कबीर गायन प्रस्तुति दी गयी। सत्र का संचालन डॉ. संगीता घोष द्वारा हुआ। द्वितीय दिवस का सांगीतिक सत्र पं कामेश्वर नाथ मिश्र की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, डॉ. स्नेहाशीष दास सत्र के विशिष्ट अतिथि रहे। श्री आशीष मिश्र (वाराणसी), डॉ. गीतेश मिश्र एवं उज्ज्वल मिश्र (दिल्ली), डॉ. कुमार अम्बरीष चंचल (वाराणसी), डॉ. ज्ञानेश चंद्र पाण्डेय (वाराणसी), डॉ संघमित्रा चक्रवर्ती (मेरठ), सुश्री ग्लोरी द्वारकेश (प्रयागराज) सत्र के कलाकारों ने प्रस्तुतियाँ दीं। सत्र का संचालन डॉ. ममता रंजन त्रिवेदी ने किया। 

संगोष्ठी के समापन सत्र की मुख्य अतिथि डॉ. विद्या बिन्दु सिंह, पं हरिराम द्विवेदी एवं पं विजय शंकर मिश्र विशिष्ट अतिथि रहे। डॉ. ज्योति सिन्हा के संचालन एवं प्रो. मालिनी अवस्थी की अध्यक्षता में संगोष्ठी को पूर्णता प्राप्त हुई।

पाँच दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार फिल्मी गीतों में लोकधुनों का प्रभाव दिनांक- 06- 10 जुलाई 2020

व्यञ्जना आर्ट एण्ड कल्चर सोसायटी, प्रयागराज की ओर से आयोजित पाँच दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार ‘ फिल्मी गीतों में लोकधुनों का प्रभाव’ के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए पद्मभूषण पं० विश्व मोहन भट्ट ने कहा- “अगर ये वार्ता नहीं सुनने को मिलती तो हम बहुत बड़े ज्ञान से महरूम रह जाते मालिनी जी ने जो धारा प्रवाह विवेचन किया है मैं दंग रह गया” । बीज वक्तव्य प्रदान करते हुए पद्मश्री विदुषी मालिनी अवस्थी ने समस्त प्रदेशों में प्रचलित लोकधुनों पर आधारित फिल्मी गीतों पर विषद विवेचना की, इस सत्र में मुख्य अतिथि जस्टिस गिरिधर मालवीय जी ने कहा- “मालिनी जी ने इतना सुन्दर वक्तव्य हम लोगों को सुनाया है कि ‘गागर में सागर भरना’ जैसी इस कहावत को चरितार्थ कर दिया”। प्रथम सत्र में विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रख्यात सिने विशेषज्ञ श्री यतींद्र मिश्र जी ने कहा- “संगीत जानना है या संगीत सिनेमा में जाना है तो बहुत ईमानदारी,बहुत मेहनत,जुनून और बहुत ही श्रद्धा की जरूरत है, नहीं तो आप अपने मोहल्ले के भी बड़े गायक नहीं बन सकते”। प्रख्यात गायिका विदुषी सुनंदा शर्मा जी ने उत्तर प्रदेश तथा पंजाब के लोग धुनों पर चर्चा की, इस सत्र के अंत में प्रख्यात भारतीय पार्श्वगायक एवं पंजाबी फोक सिंगर श्री जसबीर जस्सी जी ने कहा- “लोक संगीत की सबसे बड़ी खूबसूरती है कि वो दिल से ही आता है लोक संगीत मिट्टी का संगीत है वो लोगों के जीवन से निकलता है”। इन दोनों सत्रों का मॉडरेशन संस्था की सचिव डॉ ० मधु रानी शुक्ला ने किया। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात लेखक,तबला वादक एवं कलाविद् पंडित विजय शंकर मिश्र जी ने कहा- “लोक संगीत का मतलब हमारा संगीत आम लोगों का संगीत लोक संगीत से ही सारी विधाएं शास्त्रीय संगीत में आयी हैं”। वक्तव्य प्रदान करते हुए डॉ . इन्दु शर्मा जी ने फिल्मी गीतों में लोक लय पर विवेचना की और कानोहर लाल पी. जी. गर्ल्स कॉलेज की असि. प्रो. डॉ वेणु वनिता जी ने कहा – “लोक संगीत लोक जीवन से प्रभावित होकर निकला है और लोक जीवन का आधार है श्रम लोक गीतों को प्रगति पथ पर अग्रसर करने में श्रम भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है”। तृतीय सत्र में विशिष्ट वक्ता के रूप में कलाविद् विदुषी रमा पाण्डेय जी ने कहा- “लोक गीतों का प्रभाव तो रहेगा ही फिल्म के संगीत पर हमें अपने लोक संगीत को बचाना होगा लोक संगीत के बगैर कोई फिल्मी संगीत नहीं”। विशिष्ट वक्ता एवं वसंत कन्या महाविद्यालय की असि. प्रो. डॉ . सीमा गुजराती वर्मा जी ने कहा – “हमारी संस्कृति का उदर ही है लोक, प्रेरणा है लोक, हममें से सभी लोक के ऋणी हैं लोक मानव जीवन का अभिन्न अंग है”। विशिष्ट वक्ता पूर्व आई.जी. एवं कलाविद् डॉ. आनंद वर्धन शुक्ल जी ने कहा – “हमारा जो जीवन है हम उठते हैं, जागते हैं, बोलते हैं , शादी होती है हल्दी लगती है, विदाई होती है ये सब हमारा लोक है जो अकेले नहीं होता है लोक का मतलब होता है समूह”। तृतीय सत्र का मॉडरेशन कलाविद् श्री संजय पटेल जी ने किया, द्वितीय सत्र में परिचय प्रतीक्षा मिश्रा ने दिया तथा तृतीय सत्र में परिचय अश्मिता मिश्रा ने दिया। चतुर्थ सत्र में प्रो. संगीता पंडित जी ने बंगाल के लोक संगीत और आर.डी.बर्मन, बप्पी लहिरी जी के द्वारा फिल्मों में प्रयोग किए गए बंगाल के संगीत और वाद्यों पर चर्चा की। प्रो.के.शशी कुमार जी ने हमें दक्षिण भारतीय लोक संगीत के बारे में बताया और कुछ गाने भी सुनाए। पंचम सत्र में प्रख्यात संतूर वादक एवं कंपोजर श्री अभय सोपोरी जी ने कहा – “लोक अपने आप में इतिहास को भी बताता है कि किस जगह क्या-क्या हुआ होगा जैसे कश्मीर के लोक में आपको वो दर्द वो दबाव महसूस होगा जो हमेशा अनपर रहा है” । विशिष्ट वक्ता रवीन्द्र कौल जी ने कहा – “शास्त्रीय संगीत से भी जितने भी महान कलाकार आए हैं जब उन्होंने फिल्मों में संगीत दिया तो उसमें भी उन्होंने लोक संगीत का प्रयोग किया” । गायिका सुषमा दत्त कल्ला जी और मुनीर अहमद जी ने हमें कश्मीरी फिल्मों में और बॉलीवुड फिल्मों में प्रयोग हुए कुछ कश्मीरी गाने गा कर सुनाए। चतुर्थ सत्र का मॉडरेशन डॉ संगीता घोष जी ने किया और पंचम सत्र का मॉडरेशन संस्था की सचिव डॉ ० मधु रानी शुक्ला ने किया, चतुर्थ सत्र में परिचय शुभांगी श्रेया ने दिया और पंचम सत्र में परिचय अभिषेक गिरी ने दिया। सष्ठम सत्र बिहार में विशिष्ट वक्ता प्रो. निशा झा जी ने कहा – “लोक संगीत का क्षेत्र बहुत व्यापक है, जीवन का जितना विस्तार है, लोक संगीत का भी उतना ही विस्तार है जीवन का प्रत्येक क्षण लोक संगीत में समाहित है”। विशिष्ट वक्ता डॉ. लावण्य कीर्ती जी ने बिहार के सोहर,चैती, विदेसिया,कजरी,होली के गीत,राखी के गीत,भजन,आरती गा कर हमें सुनाए और साथ ही इन धुनों का फिल्मों में कैसे प्रयोग हुआ है यह भी गा कर बताया। विशिष्ट वक्ता एवं लोक गायिका सुश्री चंदन तिवारी जी ने फिल्मों में प्रयोग हुए कुछ बहुत ही सुन्दर भोजपुरी गीत अपनी मधुर आवाज़ में हमें गा कर सुनाए। सप्तम सत्र में विशिष्ट वक्ता एवं आकाशवाणी पुणे के सह निदेशक श्री सुनील देवधर जी ने वक्तव्य प्रदान किया और विशिष्ट वक्ता एवं गायिका डॉ अचला दीक्षित जी ने गीतों के पक्ष को अधिक रुचिकर और महत्वपूर्ण बनाने का काम किया। पंडित देवानंद पाठक जी की अध्यक्षता में सष्ठम सत्र का मॉडरेशन श्री सुरेन्द्र कुमार जी ने किया तथा सप्तम सत्र का मॉडरेशन डॉ. मनीष मिश्र जी ने किया और परिचय शांभवी शुक्ला ने पढ़ा। अष्टम सत्र भोजपुरी की अध्यक्ष प्रो.चन्द्रकला त्रिपाठी जी ने कहा- “लोक धुनों का इतिहास बहुत ही पुराना और बहुत ही मजबूत इतिहास है और वही विधा ज़िन्दा रहती है जो गतिशील होती है”। विशिष्ट वक्ता डॉ.धनंजय चोपड़ा जी ने कहा – “भोजपुरी समाज के गीतों की जो मिठास है, इसके गीतों में जो विरह है,इसके गीतों में जो आम आदमी के दिल के करीब की बात है उसमे कुछ अलग ही मौलिकता है अजब सी मूल भावना है यहां पर”। विशिष्ट वक्ता डॉ. ज्योति सिन्हा जी ने कहा – “हम सब जानते हैं कि हम सब का जीवन जो है वो लोक से इतना जुड़ा हुआ है कि लोक गीत अपने आप हमारे अंदर रचे बसे हुए हैं, लोग गीतों का जो संवाद तत्व है जो कथा तत्व है वह बहुत ही सुन्दर है”। समापन सत्र राजस्थानी लोकधुन में विशिष्ट वक्ता श्री के.सी. मालू जी ने हमें बताया कि किस तरह से राजस्थानी लोकगीतों का प्रयोग फिल्म संगीत में हुआ और कैसे फिल्मों के विषय वस्तु बदलने के कारण उन लोक धुनों की जगह दूसरे गानों ने ले ली और कैसे उन धुनों में मिश्रण करके दूसरे गाने बना दिए गए।उन्होंने कहा कि “राजस्थानी लोक धुन या किसी भी लोक धुन का प्रयोग जब भी अच्छी तरह से किया गया है उसका परिणाम सदैव अच्छा ही रहा है”। विशिष्ट वक्ता एवं संगीत निर्देशक श्री जुगल किशोर जी ने कुछ राजस्थानी लोक गीत हमें गा कर सुनाए और राजस्थानी लोक धुनों पर आधारित फिल्मी गाने भी गा कर सुनाए, सीमा मिश्रा जी ने राजस्थान का वेलकम सॉन्ग “केसरिया बालम पधारो म्हारे देस”, “घूमर”, “मोरनी बागां मा” गा कर कार्यक्रम की शुरुआत की। अष्टम सत्र का मॉडरेशन डॉ. श्लेष गौतम जी ने किया और समापन सत्र का मॉडरेशन श्री सुरेश मुद्गल जी ने किया, अष्टम सत्र का परिचय शुभांगी श्रेया ने पढ़ा और समापन सत्र में परिचय शांभवी शुक्ला ने पढ़ा। इस पांच दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का रिपोर्ट डॉ मनीष मिश्रा ने प्रस्तुत किया एवं संस्था के सचिव डॉ मधु रानी शुक्ला ने सभी का आभार व्यक्त किया एवं वेबिनार का समापन किया।

अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरविषयी संगोष्ठी 

‘सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिप्रेक्ष्य में गंगा’

दिनांक 19-20 अक्टूबर 2019, ऋषिकेश, उत्तराखंड

दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्विषयी संगोष्ठी सामाजिक,  सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिप्रेक्ष्य में गंगा के उद्घाटन सत्र मुख्य अतिथि माननीय श्री प्रेमचंद अग्रवाल जी, अध्यक्ष, उत्तराखण्ड विधान सभा, विशिष्ट अतिथि पद्मभूषण विदुषी उमा शर्मा जी, नगर पालिका अध्यक्ष श्री रोशन राठूरी जी ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया, वृन्दावन से पधारे श्रीयुत श्री श्रीवत्स गोस्वामी जी ने अत्यन्त सारगर्भित बीज वक्तव्य प्रदान किया। सत्र में डॉ राजेश मिश्र, श्री अग्निशेखर जी ने, डॉ अभय मिश्र ने वैदिक काल से लेकर लोक संस्कृति तक की गंगा के सामाजिक सांस्कृतिक व आर्थिक सभी पक्षों पर विधिवत चर्चा की इस सत्र के विद्वतापूर्ण मॉडरेटर डॉ राजा पाठक रहे सत्र की अध्यक्षता प्रो. मौली कौशल जी ने की। संगोष्ठी का द्वितीय एवं तृतीय सत्र संगीतमय प्रस्तुति रही तनुश्री कश्यप, डॉ श्वेता जायसवाल, डॉ रामशंकर, नेपाल से श्रीमती रूपा न्यूपाने, डॉ संजय वर्मा, सुश्री मॉम गांगुली, सुश्री कविता द्विवेदी, श्रीमती रक्षा सिंह डेविड, सुश्री अस्मिता मिश्रा, सुश्री शिफ़ा डेविड, श्रीमती रेनू शर्मा, पंजाब वि. वि. के विद्यार्थियों ने सुर लय के माध्यम से गंगा के विविध रूपों को दर्शाया सत्र की अध्यक्षता प्रो. गुरूप्रीत कौर ने की। संगोष्ठी के अगले दिन देश -विदेश से पधारे अनेक विद्वानों ने अपने प्रपत्र का वाचन किया ।

अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरविषयी संगोष्ठी  

‘वैश्विक सन्दर्भ में शिव शक्ति’

कालिदास एक्डमी, उज्जैन, मध्य प्रदेश

दिनांक 29-30 सितम्बर 2018

कालिदास अकादमी उज्जैन में वैश्विक सन्दर्भ में शिव शक्ति अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरविषयी संगोष्ठी आयोजित हुई जिसमें प्रख्यात संतूर वादक पं. भजन सपोरी मुख्य अतिथि रहे, प्रो. केदार नारायण जोशी जी ने बीज वक्तव्य तथा प्रो. भगवती लाल राजपुरोहित ने विशिष्ट वक्तव्य प्रदान किया काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों वे शिव संकल्प स्तोत्र गाया राजेश तिवारी जी ने धन्यवाद ज्ञापन तथा अशोक वक़्त जी ने आभार दिया। उद्घाटन सत्र में डॉ विशाल जैन ने ध्रुपद गायन में शिव शक्ति सम्बन्धित पदों की प्रस्तुति की पखावज पर संगति रोमन दास ने की कालिदास अकादमी मे आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्विषयी संगोष्ठी वैश्विक सन्दर्भ में शिव शक्ति के प्रथम सत्र में डॉ. अग्निशेखर, डॉ. शैलेन्द् शर्मा, डॉ. राजा पाठक ने वक्तव्य प्रदान किया अध्यक्षता पं भजन सोपोरी जी ने, संचालन डॉ. उषारानी रॉव ने किया कालिदास अकादमी मे आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्विषयी संगोष्ठी वैश्विक सन्दर्भ में शिव शक्ति के द्वितीय सत्र में आकर्षण डॉ. रामशंकर, डॉ शान्ति महेश, तनुश्री कश्यप तथा श्रीमती दक्षिणा वैद्यनाथन की प्रस्तुति रही संगोष्ठी के इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. गुरूप्रीत ने तथा डॉ. ज्योति सिन्हा ने संचालन किया, तृतीय सत्र में आकर्षण विदुषी दीप्ति ओमचारी भल्ला ने मोहनीअट्टम, विदुषी कविता द्विवेदी ने ओडिसी के माध्यम से शिवशक्ति के अर्धवारीश्वर रूप को दर्शाया, विदुषी माध्वी पुराणम ने शिव शक्ति के आध्यात्मिक दार्शनिक स्वरूप की विवेचना की, पं भजन सोपोरी जी ने कश्मीर के लोक संगीत में ध्वन्यात्मक वैविध्यपूर्ण उद्धरणों के माध्यम से अद्भुद् व्याख्या की इस मनमोहक सत्र का संचालन डॉ. लावण्य कीर्ती सिंह काव्या ने किया, द्वितीय दिन देश-विदेश से आये अनेक विद्वानों ने शिव शक्ति से जुड़े विभिन्न पक्षों पर अपने विचार रखे, अन्तिम सत्र में प्रो. के. शशि कुमार जी ने कर्नाटक शैली में अनेक पदों के माध्यम से शिव शक्ति के विविध रूपों को दर्शाया,  प्रो राजेश केलकर, प्रो. अश्विनी सिंह, प्रो. अहमद रजा खान ने अनेक पदों के माध्यम से शिव शक्ति के विविध रूपों को दर्शाया, समापन सत्र में डॉ. रीना सहाय ने दो दिवसीय संगोष्ठी का सार संक्षेप प्रस्तुत किया डॉ. अग्निशेखर, श्री सुनील मिश्र, पं भजन सोपोरी ने संगोष्ठी ने अपने विचार रखते हुए संगोष्ठी को पूर्णता प्रदान की।

भारतीय सिनेमा की विकास यात्रा
16 सितंबर 2017

व्यंजना आर्ट एण्ड कल्चर सोसायटी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी सिनेमा की विकास यात्रा-Evolution of Indian cinema (प्रयाग संगीत समिति सभागार)- मुख्य अतिथि श्री अरूण कुमार, सचिव, प्रयाग संगीत समिति तथा विशिष्ट अतिथि श्री चन्द्रशेखर पुसलकर (grandson of Dada saheb falke), संगोष्ठी में बीज वक्तव्य श्री प्रहलाद अग्रवाल जी का रहा विशिष्ट वक्ताओं में डॉ मनमोहन चड्ढा,डॉ आनन्द वर्द्धन शुक्ल, प्रो. अनिल चौबे जी, डॉ गौतम चटर्जी ,श्री सुनील मिश्र जी रहे। समारोह के समापन सत्र में मुख्य अतिथि न्यायामूर्ती गिरिधर मालवीय जी एवं विशिषट अतिथि कमिश्नर डॉ आशीष गोयल जी रहे।

अंतर्राष्ट्रीय अंतर्विषयी संगोष्ठी
‘लोक संस्कृति में राम‘
अयोध्या शोध संस्थान, अयोध्या, उत्तर प्रदेश
30 अप्रैल-1 मई 2017

दिनांक 30.04.2017 को अयोध्या शोध संस्थान के संयुक्तत्वाधान में व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी एवं झुनझुनवाला ग्रुप ऑफ़ इन्सटीट्यूश्न्स ने दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्विषयी संगोष्ठी ‘लोक संस्कृति में राम‘ का आयोजन किया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डाॅ. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने समस्त अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान की कार्य प्रणालियों पर प्रकाश डाला साथ ही उन्होने विशिष्ट विषयों पर शोध की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डाला, ‘राम’ के आध्यात्मिक, धार्मिक व अलौकिक रूप की चर्चा की । विषय की स्थापना करते हुए व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी की सचिव डाॅ. मधु रानी शुक्ला ने विषय के अनुरूप स्थान का चयन यानी अयोध्या में ही राम की चर्चा क्यूँ ? पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “इस संगोष्ठी के लिए यहाँ का राममय वातावरण ही उचित था, घट-घट व्यापि राम, जन-जन के राम तथा जन-जन में राम के रूप में प्रतिष्ठित है”। झुनझुनवाला ग्रुप ऑफ़ इन्सटीट्यूश्न्स के निदेशक डाॅ. गिरिजेश त्रिपाठी द्वारा संस्था की कार्य प्रणाली पर प्रकाश डाला गया। संगोष्ठी का औपचारिक प्रारम्भ दीप प्रज्जवलन से हुआ जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पद्मश्री स्वामी जी. सी. डी. भारती जी, श्रीयुत् श्री श्रीवत्स गोस्वामी जी, विदुषी दीदीमाँ मन्दाकिनी रामकिंकर जी, श्री सी. पी. मिश्रा जी आदि ने सहभागिता निभाई। तत्पश्चात पं. रामाश्रय झा द्वारा रचित ‘संगीतमय रामायण‘ की प्रस्तुती काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य तथा प्रख्यात गायक डाॅ. राम शंकर द्वारा की गई आपके साथ तबले पर रजनीश और हारमोनियम पर संगत पंकज शर्मा ने की। संगोष्ठी का प्रारम्भ वृन्दावन से पधारे भागवताचार्य श्रीयुत् श्री श्रीवत्स गोस्वामी जी के बीज वक्तव्य से हुआ, उन्होने कहा-“कृष्ण राममय है और राम कृष्णमय, राम के ऐतेहासिक, सामाजिक एवं साहित्यिक पक्षों पर प्रकाश डाला”। इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए विशिष्ट वक्ता के रूप में पधारीं रामकथा मर्मज्ञ विदुषी दीदीमाँ मन्दाकिनी रामकिंकर जी ने रामराज्य की स्थापना पर विशेष बल दिया, उनके अनुसार “रामराज्य की परिकल्पना श्री भरत, लक्ष्मण, शत्रुघन, हनुमान, सुग्रीव, जामवंत जैसे कर्तव्यनिष्ठ पात्रों के बिना असम्भव है” साथ ही भौतिक विकास की अपेक्षा आतंरिक विकास पर विशेष बल दिया। संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे कबीरपंथी गायक पद्मश्री स्वामी जी. सी. डी. भारती जी ने कबीर, रहीम, रस्ख़ान, मीरा, नानक के राम की विधिवत चर्चा करते हुए कहा- “एक राम दशरथ का बेटा, एक राम सारे जगत पसारा…” उनकी व्याख्या राम के लौकिक रूप से पात्रों के बिना असम्भव है” साथ ही भौतिक विकास की अपेक्षा आतंरिक विकास पर विशेष बल दिया। इस सत्र के अंत में संगोष्ठी की अध्यक्ष श्रीमती मंजुला झुनझुनवाला ने धन्यवाद ज्ञापन किया। उद्घाटन सत्र का संचालन महाराष्ट्र से पधारे डाॅ॰ मनीष सी. मिश्रा ने किया। द्वितीय सत्र में कैरोलीना विश्वविद्यालय से आये विद्वान श्री जाॅन कैडवेल ने ’Temples in the North Carolina‘ के बारे में बताते हुए North Carolina में रामलीला के वृतांत का विस्तृत विवेचन किया एवं चित्रण दिखाया जो अपने में अत्यन्त प्रशंसनीय कार्य है। इनके पश्चात् Indonesia से पधारे श्री अफ़रोज़ ताज ने ‘Ram Katha in the World’s longest Muslim Country: Indonesia’ का विस्तृत विवेचन किया अयोध्या को तीन स्थानों पर बताया जैसे अयोध्या – भारत मे, अयोध्या -थाइलैण्ड मे, अयोध्या (योगाकर्ता) -Indonesia मे, तत्पश्चात् दिल्ली से पधारीं डाॅ. फ़रहत रिज़वी जी ने ‘उर्दू साहित्य में राम‘ पर किये गये कार्यो की विधिवत विवेचना की तथा अनेक रोचक तथ्यों को उजागर किया। जापान से आयीं सुश्री तोमोका मुशिगा ने ’Discovered Ramgaya‘ में बिहार राज के ‘गया‘ क्षेत्र के ‘रामगया‘ स्थल की ऐतेहासिक एवं पुरातात्विक विशिष्टताओं की विवेचना की। माॅरिशस से आयीं सुश्री भजन राधाष्टमी ने ‘Rama in Mauritius‘ पर विधिवत प्रकाश डाला। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डाॅ. आशा अस्थाना जी ने की व संचालन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डाॅ. धनञ्जय चोपड़़ा ने किया। तृतीय सत्र सांस्कृतिक संध्या के रूप में व्याख्यान प्रदर्शन पर आधारित रहा जिसमे कोलकाता से पधारीं श्रीमती देवयानी चटर्जी ने भरतनाट्यम् के माध्यम से, पटना से पधारीं डाॅ. रमा दास ने निराला के शक्ति काव्य पाठ से, काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के गायन विभागाध्यक्ष तथा प्रतिष्ठित कलाकार प्रो. के. शशी कुमार ने स्वामी त्यागराज, श्री मुत्तु स्वामी दिक्षितर् तथा श्री पुरंदर दास द्वारा रचित राममय पदों का कर्नाटक शैली में गायन प्रस्तुत किया, मुम्बई से पधारीं डाॅ. माधवी नानल ने शास्त्रीय व उपशास्त्रीय संगीत की अनेक शैलियों में राममय पदों का गान किया, वाराणसी के श्री पंकज शर्मा ने राम पद गाया इनके साथ श्रीलंका से पधारे श्री अबेयसेकारा ने तबले पर संगत की, कानपुर से पधारे प्रख्यात गायक पं॰ विनोद द्विवेदी ने ध्रुपद-धमार शैली में राम के पदों की प्रस्तुति दी, शांति निकेतन कोलकाता से पधारे डाॅ. सुजीत घोष ने भरतनाट्यम् शैली में प्रस्तुति दी, दिल्ली से आयीं कु. अस्मिता मिश्रा ने कथक में राम के विभिन्न रूपों को दर्शाया, उ. प्र. के सुप्रसिद्ध ढेढ़िया नृत्य की प्रस्तुति इलाहाबाद के श्री आनन्द किशोर ग्रुप ने दी एवं अंत में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे कबीरपंथी गायक पद्मश्री स्वामी जी. सी. डी. भारती जी ने राम को कबीर के पदों में दर्शाते हुए लौकिक कार्यक्रम को अलौकिकता से मिला दिया। इस सत्र की अध्यक्षता दिल्ली से पधारे पं. विजय शंकर मिश्र तथा राजस्थान से पधारे श्री के. सी. मालू जी ने की एवं संचालन भागलपुर विश्वविद्यालय की गायन विभागाध्यक्ष प्रो. निशा झा, सुश्री शुभांगी श्रेया व सुश्री सुचित्रा यादव ने किया। दिनांक 01.05.2017 की संगोष्ठी का शुभारम्भ दरभंगा विश्वविद्यालय की डाॅ. लावण्य कीर्ति सिंह ‘काव्या‘ व भागलपुर विश्वविद्यालय की प्रो. निशा झा ने चैती में राम पदों के गान से किया। बाद में श्री अफ़रोज़ ताज व श्री जाॅन कैडवेल ने स्वरचित राम पद का गान किया। चतुर्थ सत्र की अध्यक्ष्ता लखनऊ से पधारे श्री योगेश प्रवीन जी ने की व माॅडरेटर डाॅ. लावण्य कीर्ति सिंह ‘काव्या‘ थीं। सर्वप्रथम डाॅ. सुमन दुबे ने भोजपुरी लोकगीतों में राम की सोदाहरण व्याख्या की, डाॅ. धनञ्जय चोपड़़ा ने ‘तुलसीदास रचित रामचरितमानस‘ में वर्णित राम को जनसंवाद के माध्यम से विश्लेषण कर व्याख्या किया। राजस्थान से पधारे श्री के. सी. मालू जी ने राजस्थानी लोकसंस्कृति में राम जो की जन के राम है की विधिवत विवेचना की। इस सत्र का संचालन कोलकता से पधारीं डाॅ. ममता रंजन त्रिवेदी ने किया। समापन सत्र की अध्यक्ष्ता पंजाब से आयीं डाॅ. नीलम पाॅल ने की, इस सत्र में गोण्डा की डाॅ. मनीषा सक्सेना ने शास्त्रीय संगीत में राम की चर्चा की तत्पश्चात् इलाहाबाद की डाॅ. कनकलता दुबे ने राम के न्यायिक पक्षों पर प्रकाश डाला। पं. विजय शंकर मिश्र जी ने तबला में वर्णित राम-रावण युद्ध का पढ़तं किया। प्रो. निशा झा ने दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्विषयी संगोष्ठी की रूपरेखा प्रस्तुत की। आभार वक्तव्य व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी की सचिव डाॅ॰ मधु रानी शुक्ला ने प्रस्तुत किया व संचालन डाॅ॰ मनीष सी. मिश्रा ने किया।

अंतर्राष्ट्रीय अंतर्विषयी संगोष्ठी
‘टूरिज़्म एण्ड कल्चर‘
पार्वती मिठिबाई काॅलेज, गोआ
11-12 मई 2016

पार्वती मिठिबाई काॅलेज, गोआ के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 11-12 मई 2016 को ‘टूरिज़्म एण्ड कल्चर‘ विषय पर गोआ में अंतर्राष्ट्रीय अंतर्विषयी संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें प्रख्यात इतिहासकार एवं कलाधर्मी प्रो. निर्मल कुमार ने बीज वक्तव्य प्रदान किया, संगोष्ठी की अध्यक्षता दक्षिण कोरिया के डॉ. रवि वैथियास ने की। तत्पश्चात् देश-विदेश से पधारे अनेक प्रख्यात विद्वानों ने ‘टूरिज़्म एण्ड कल्चर‘ के माध्यम से कला-संस्कृति को बढ़ाने पर विशेष बल दिया। कार्यक्रम के समापन सत्र में मुख्य अतिथि वीणा म्यूज़िक कम्पनी, जयपुर के मालिक श्री के. सी. मालू जी रहे।

अंतर्राष्ट्रीय अंतर्विषयी संगोष्ठी
‘वैश्विक संदर्भ में राधा-कृष्ण प्रेम‘
वृन्दावन शोध संस्थान, वृन्दावन
28-29 फरवरी 2016

वृन्दावन शोध संस्थान, वृन्दावन के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 28-29 फरवरी 2016 को वृन्दावन में ‘वैश्विक संदर्भ में राधा-कृष्ण प्रेम‘ विषय पर अंतर्राष्ट्रीय अंतर्विषयी संगोष्ठी का आयोजन किय गया। जिसमें बीज वक्तव्य प्रख्यात नृत्यांगना डाॅ. सोनल मानसिंह ने तथा अध्यक्षता विदुषी विद्या बिन्दु सिंह ने की। संगोष्ठी में देश के विभिन्न भागो से लगभग 200 प्रतिभागियों ने भाग लिया, मुख्य अतिथि दक्षिण कोरिया के डॉ. रवि वैथियास थे। इसमें U.S.A., Canada, South Korea, France से आए विभिन्न तथ्यो का उद्घाटन किया। समापन सत्र की मुख्य अतिथि प्रख्यात नृत्यांगना डाॅ. गीता चन्द्रन जिन्होने राधा-कृष्ण सम्बंधित पदों पर व्याख्यान एवं प्रदर्शन के द्वारा अपना वक्तव्य प्रदान किया। इस संगोष्ठी विशिष्टता देश से आए हुए प्रख्यात कलाकार डाॅ. राम शंकर, डाॅ. निशा झा, डाॅ. नीरा चैधरी, श्री आशीष मिश्रा का संगीतमय व्याख्यान एवं प्रदर्शन रहा। सांयकाल में कान्हा म्यूज़िक एकेडमी के कलाकारों द्वारा वृन्दावन की रासलीला का प्रदर्शन हुआ।