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कला क्षेत्र में ’नारी’ प्राची से प्रतीची

कलाओं में मंच कला अर्थात् संगीत और संगीत क्षेत्र में नारी का जुड़ाव वैदिक काल से ही प्राप्त होता है स्त्रियाँ कलाओं में अभिव्यक्ति का साधन भी रहीं है और साधक भी अगर उनके कला क्षेत्र में जुड़ाव का ऐतिहासिक विश्लेषण करें तो वैदिक काल से ही स्त्रियाँ वैदिक कृत्यों में संलग्न थी समाज में उनका स्थान था ’यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता’ की भावना से ओत प्रोत समाज में स्त्री गरिमा मय उपस्थिति रखती थी।
प्राचीन काल में भी कला क्षेत्र नारियों की सम्मानजनक सहभागिता रही है चौथी पाँचवी शताब्दी में वर्णित ग्रन्थ नाट्यशास्त्र में नारी को कला क्षेत्र में अधिकारों की विशेष सीमा नहीं खींचते हुए सहजरूप से कला की अभिव्यक्ति में स्वतंत्र दिखाई देती है।
वैदिक काल में महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकार थे उन्हें उच्च ज्ञान के साथ ही धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आवश्यक अंग माना गया वे वेदों के अध्ययन के साथ ही शास्त्रार्थ में भी भाग लेती थी यामी, अपाला, घोषा, गार्गी आदि कई नाम हमें विदुषियों के प्राप्त होते हैं रक्षा हेतु उन्हें सैनिक शिक्षा भी दी गई थी साथ ही कला संस्कृति के संरक्षण संवर्धन हेतु उन्हे नृत्य संगीत की शिक्षा भी प्रदान की गई वे तत्कालीन राजनीति का भी अनिवार्य अंग थी।
उŸार वैदिक काल से महिलाओं की स्थिति में थोड़ा परिवर्तन आया। काल परिवर्तन के साथ ही अनेक दुर्गुण सामने आये बहु विवाह, बाल विवाह, सती प्रथा, देवदासी प्रथा, वैश्यावृति, परदा प्रथा, जौहर जैसी कुरीतियों ने स्त्री को कमजोर किया वह भोग्या समझी जाने लगी। मौर्य काल में महिलाओं की स्थिति उŸार वैदिक काल से थोड़ी सही रही उन्हे पुर्नविवाह तथा नियोग की भी अनुमति दी जाने लगी हाँलाकि इसी समय दहेज प्रथा जैसी भीषण कुरीतियों का आविर्भाव हुआ किन्तु कला संस्कृति के साथ ही रक्षा के क्षेत्र में भी महिलाएँ अपना योगदान देती रहीं।
मध्यकाल में मुगलों के आगमन के पश्चात् नारियों की स्थिती में परिवर्तन आया एक तो मुस्लिम धर्म में ही संगीत को हराम माना गया स्त्रियों के सन्दर्भ में तो और भी अधिक रूढ़ीवादिता रही जो स्त्रियाँ संगीत में जुड़ी भी रही उन्हे समाज में हेय दृष्टि से ही देखा जाता था कारण अमोद-प्रमोद के साधन के रूप में स्त्रियों द्वारा कला प्रदर्शन की छूट रही जिसके कारण संगीत का आध्यात्म से हटकर मनोरञजन के रूप में प्रयुक्त होना रहा है। ऐसे समय में ही अनेक स्त्रियों की चर्चा प्राप्त होती है जिन्होनें न केवल कला संस्कृति में वरन् समाज को गति देने में कुशल नेतृत्व संभाला उनकी स्वयं की सोच ने समाज का मार्गदर्शन किया है। मुगल काल में चाँद बीबी जैसी वीरांगनाओं के साथ ही जहाँआरा, जेबुनिसा जैसी कवियित्रियों की चर्चा प्राप्त होती है शिवाजी की माँ जीजाबाई भी एक योद्धा तथा उत्कृष्ट प्रशासक थी दक्षिण भारत में भी अनेक स्त्रियों ने धार्मिक, सामाजिक संस्थानों की शुरूआत की। भक्ति आंदोलन में नारी शक्ति प्रधान रही जिसने स्वयं की दृष्टि एवं दृण निश्चय से जगत को अनुगामी बना लिया संत मीराबाई, अक्का महादेवी, रानी जानाबाई और लालदेद जिन्हें लल्लेश्वरी भी कहा गया उन्होंने संस्कृति का नया अध्याय स्थापित किया। कालान्तर में अनेक महिलाओं ने क्रान्तीकारी भूमिका का स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाई, भारत की आजादी में भीकाजी कामा, डॉ0 एनीबेसेन्ट, श्री प्रीतिलता वाडेकर, विजय लक्ष्मी पंडित, राज कुमारी अमृत कौर, अरूना आसिफ अली, सुचेता कृपलानी, कस्तूरबा गांधी, दुर्गा देवी, मुथुलक्ष्मी रेड्डी, लक्ष्मी सहगल जैसी नेतृत्व करने वाली महिलाओं के साथ कवियित्रि सरोजिनि नायडू भी थी।

आधुनिक काल के पूर्वाध तो संगीत में स्त्रियों की स्थिती संतोषजनक नहीं रही किन्तु उत्तरार्ध से स्त्रियों की स्थिति में बदलाव प्रारम्भ हुआ जो आज भी जारी है वर्तमान परिप्रेक्ष में यदि हम मंच कलाओं में नारी की स्थिती का आंकलन करें तो नारी की अवस्था पुरूष से भिन्न रूप में नहीं है कोई स्त्री-पुरूष की सीमा रेखा निर्धारित नहीं है वैसे तो जीवन में सभी ने संघर्ष से ही सफलता हासिल की होगी मगर कुछ नाम मैं विशेष रूप से लेना चाहूँगी जिस प्रकार पुरूष कलाकार, शिक्षक, लेखक, चिन्तक विचारक, पत्रकार के रूप में अपने कलाओं की अभिव्यक्ति विभिन्न माध्यमों से कर रहे है उसी प्रकार स्त्री भी समान रूप से कलाओं की अभिव्यक्ति कर रही है बल्कि मुझे तो लगता है नारियों की संख्या पुरूषों से अधिक ही है। सिद्धेश्वरी देवी, जानकी बाई, जद्दन बाई, एम एस सुबुलक्ष्मी, बाला सरस्वती, किशोरी अमोनकर, डॉ0 सोनल मानसिंह, तीजनबाई, डॉ0 मालनी अवस्थी जैसी कलाकारों ने अत्यन्त संघर्ष व धैर्य से पुरूष प्रधान समाज में अपनी जगह बनाई।
वात्सल्य, श्रृंगार, दृणता, न्याय, प्रियता व साहस जैसे विविध भावों से परिपूर्ण नारी परिवार, देश, समाज के निर्माण में महती भूमिका का निर्वहन करती है। स्त्री को घर से संसद तक की दुनिया में आने में, अपने को स्थापित करने में वर्षों लगे जब नारी ने कला क्षेत्र में पर्दापण किया तो वहाँ भी उसने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। प्रेम, सुख, दुख, विछोह, कुंठा, मन में पलता विद्रोह, प्रेम सर्मपण ने जब कला जगत में चरण रखे तो अपने होने का अहसास कराया ये अलग बात है कि समाज ने उसे स्वीकार करने में समय लगाया। प्रायः समाज ने कला जगत में भी उसे दोयम दर्जे पर ही रखा परिश्रमिक से लेकर मंच प्रदान करने में, किन्तु सभी परिस्थितियों में संयमित रूप से नारी कार्य करती रही।
आगे बढ़ती स्त्री सदैव समाज के तीखे नजरों के निशाने पर रही। वो सदैव आलोचना, कटाक्ष एवं उपहास का पात्र रही कितनी भी गुणवत्ता, परिश्रम, सर्मपण से कार्य कर रही हो पर आलोचना की ही शिकार रही। उच्च स्तर तक पहुँचने में उसे समय लगा कुछ गिने चुने लोग ही उस स्तर तक पहुँचे और जो उपर पहुँचे वो भी सतत् आलोचनाओं, कटाक्षों को सहते हुए समाज ने ये मानने में कठिनाई महसूस की कि उसने मुकाम अपनी निष्ठा व कर्मठता के रूप में हासिल किया है लोग तो खंगालते पाये गये उनके व्यिंक्तत्व उनके सार्वजनिक व नीजी जीवन को। कोई तो सूत्र मिले जिससे वो आगे बढ़ती नारी के कमजोर पक्ष को दिखा सके बता सके कि उसने वह मुकाम किन किन गलत मार्ग से पाया और ये अन्तहीन रस आह! हर वर्ग, हर जाति को मोहा पर नारी के परिश्रय व धैर्य व कर्त्तव्य निष्ठा ने प्रमाणित कर ही दिया है कि वह भी कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर सकती है सरकारी, गैर सरकारी, व्यक्तिगत जो भी संस्थाएँ मंच कला को विकसित कर रही हैं उनमें स्त्रियों की सहभागिता सामान्य रूप से प्रत्येक स्थान पर है अनेक प्रकार की स्कॉलरशिप, फलोशिप, एवार्ड, सभी में स्त्रियाँ समान प्रतिभागी रही हैं पद्म पुरस्कारों से लेकर भारत रत्न पुरस्कारों (संगीत क्षेत्रों में) स्त्रियाँ भी शामिल रही हैं।
जो स्त्रियाँ समाज के द्वारा कला जगत में शोषित होने का दर्द महसूस करती हैं उन्हें सजग होकर कला साधना करते हुए आगे बढ़ते जाना है आवश्यकता है कि विश्लेषण कर उसी दिशा में कदम उठायें जो उचित हो और निम्न स्तर पर सहयोग या क्षणिक लाभ की अपेक्षा न करते हुए सही संस्थाओं से जुड़कर अपनी कला साधना को विस्तार दे और प्रगति पथ पर बढ़ें। महिला विकास मंत्रालय द्वारा संचालित कार्य नीति से सम्बन्धित विवरणों के माध्यम से महिलायें स्वयं को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से सशक्त बना सकती हैं। संस्थाएँ महिलाओं को सबल बनाने में सहायता देती हैं उन्हें ढूँढ़े, उनसे जुड़े व सजगता से अपना भविष्य सुरक्षित करने के साथ ही संस्कृति संरक्षण में अपना योगदान दें।

कर्त्तव्य निष्ठा ने प्रमाणित कर ही दिया है कि वह भी कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर सकती है सरकारी, गैर सरकारी, व्यक्तिगत जो भी संस्थाएँ मंच कला को विकसित कर रही हैं उनमें स्त्रियों की सहभागिता सामान्य रूप से प्रत्येक स्थान पर है अनेक प्रकार की स्कॉलरशिप, फलोशिप, एवार्ड, सभी में स्त्रियाँ समान प्रतिभागी रही हैं पद्म पुरस्कारों से लेकर भारत रत्न पुरस्कारों (संगीत क्षेत्रों में) स्त्रियाँ भी शामिल रही हैं।
जो स्त्रियाँ समाज के द्वारा कला जगत में शोषित होने का दर्द महसूस करती हैं उन्हें सजग होकर कला साधना करते हुए आगे बढ़ते जाना है आवश्यकता है कि विश्लेषण कर उसी दिशा में कदम उठायें जो उचित हो और निम्न स्तर पर सहयोग या क्षणिक लाभ की अपेक्षा न करते हुए सही संस्थाओं से जुड़कर अपनी कला साधना को विस्तार दे और प्रगति पथ पर बढ़ें। महिला विकास मंत्रालय द्वारा संचालित कार्य नीति से सम्बन्धित विवरणों के माध्यम से महिलायें स्वयं को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से सशक्त बना सकती हैं। संस्थाएँ महिलाओं को सबल बनाने में सहायता देती हैं उन्हें ढूँढ़े, उनसे जुड़े व सजगता से अपना भविष्य सुरक्षित करने के साथ ही संस्कृति संरक्षण में अपना योगदान दें