वर्ष 2006 में शिव कुमार शर्मा से मेरा पहला परिचय हुआ जब वो स्पिक मैके प्रयागराज के बुलावे पर प्रयाग आये 27 दिसंबर की कड़कती रात में भी सरस्वती घाट पर आयोजित कार्यक्रम में हज़ारों की संख्या में विद्यार्थी और श्रोता बैठे थे …शान्त सौम्य व्यक्तित्व स्मित मुस्कान लिए हुए परन्तु कला व कलाकार के प्रति प्रतिक्षण सजग मुझे याद आता है वर्ष 2008 में त्रिवेणी महोत्सव में प्रस्तुति के दौरान अधिकारियों के लिए चाय आ गई वो तुरंत कार्यक्रम रोक कर बैठ गये ….चाय वापस गई और फिर त्रिवेणी महोत्सव की भारी भीड़ कला का रसास्वादन करती रही ।जो मंच वॉलीवुड के शोर शराबे वाले गीतों के बाद का दिन शिव जी के नाम रहा तो मानो तपती रेत जैसे मन मस्तिष्क पर सुमधुर रिमझिम फुहारों ने शीतलता प्रदान कर दी।
पं जी से मेरी तीसरी मुलाक़ात वर्ष 2014 एम एन एन आई टी में कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करने पर हुई मैं उनको लेने के लिए बाबतपुर एयरपोर्ट पर गई तयशुदा समय से पहले ही फ़्लाइट आ गई थी मैं परेशान….क्या करूँ मुझे आधे घण्टे का समय लगना था पं जी ने बड़ी सहजता के साथ वी आई पी रूम में बैठे…मैं डरते डरते पहुँची तो बोले आपकी क्या गलती फ़्लाइट तो मेरी पहले आ गई …..फिर शाम का समय पं जी कार्यक्रम के लिए सभागार में पहुँचे उस दिन क्रिकेट का कोई रोमांचक मैच था लगा पब्लिक क्या ही आयेगी…. लोग बैठे रहे पं बजाते रहे पं जी बार बार पूछते रहे कि जब बन्द करना हो बता दें मगर लोग तो सम्मोहित थे 😊पं जी का दो तरह का व्यक्तित्व था जिससे प्रेम है व्यवहार है वो सहज पर जिससे सम्बन्ध नहीं है उसके साथ रिज़र्व । हँसी के फुहारें भी बातों के मध्य छोड़ते रहते ।देश की राजनीतिक परिस्थितियों के प्रति सहज ….मुझे याद आता है कि बाबतपुर एयरपोर्ट पर मिलने पर हाल चाल लेने के बाद ही चुनाव से सम्बंधित विधिवत चर्चा की …पं को संगीत शास्त्र से भी बेहद लगाव था वर्ष 2006 में मैंने काकु विषय पर लिखी अपनी पुस्तक उन्हें भेंट की तो उन्होंने कहा कि यह तो बहुत कठिन और महत्वपूर्ण विषय पर आपने पुस्तक लिखी…ओंकार नाथ ठाकुर से लेकर डॉ एन राजम् ,भीमसेन जोशी,कुमार गन्धर्व तक के काकु प्रयोग की विधिपूर्वक व्याख्या की ….आज वो सशरीर नहीं है फिर भी अपने संगीत से अपनी बातों से तथा अपने विनम्र व्यवहार से वो हमारे दिलों में हैं और रहेंगे 😊🙏