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याद ए पतंग

याद-ए-पतंग

ये रंग बिरंगी मोहती पतंगे ,आकाश मे उन्मुक्त सी उड़ती पतंगे मात्र एक खिलौना नहीं ये तो मन को उमंग उत्साह को बढ़ाने वाली , कल्पनाओं को पंख देने वाली होती हैं । सच कहें तो बचपन की ही भाँति आज भी इन पंतगों को देख आकाश छूने को मन मचलने लगता है और हो भी क्यूँ न ये इठलाती , बलखाती आकाश में उड़ती भी तों… कितने ही बच्चों की आँखों में चमक लाने वाली ये ठुमक ठुमक कर चिढ़ाती भी हैं सिर को छू छूकर चली जाने वाली बहुत देर तक मन को मसोसती हैं तब कितनी ही चिढ़ होती है अपने पर… पास ही तो थी पकड़ लिया था बस फिसल गई… थोड़ी देर अफ़सोस करने के बाद ये बावरा मन फिर साज़िशें करने लगता है इन्हें पकड़ने की… पर ये हैं कि जल्दी हाथ ही नहीं आतीं और जब पकड़ ली जातीं सो मानो जन्नत मिल जाती…. बूढ़े भी बच्चे बन जाते… बड़े सारे टेक्निकल टर्म होते हैं पतंगबाजों के जैसे नख, मंझा, परेता, लटाई, छुड़ैया, पटखनी, ढील देना और न जाने क्या क्या 😀
हर साल मिस करती हूँ बचपन में गूँजती आवाज़ें भाक्काटा….. बड़ी नख से और उन आवाज़ों को सुनते ही छत पर भाग के जाना कि पतंग की डोर का कोई सिरा हाथ में आ जाए उड़ाने में भी पीछे नहीं रही मौक़ा मिलते ही उड़ाया ये अलग बात कि थोडी उँची जाने पर ही पटक जाती फिर पड़ोसी तोड़ लेते भाई साहब की चप्पल की आवाज़ सुनते ही भागती 🏃‍♀️ मगर खिचड़ी का दिन और पतंग बनारस में पर्यायवाची हैं तो पतंग भाई साहब भी उड़ाते और भाई साहब के साथ तो केवल छुड़ईया (ये सब बनारस में पंतग बाजों के टेक्निकल टर्म हैं) देकर ही खुश 😀 हाँ इतनी छूट जरूर मिलती की परेता (इलाहाबाद मे लटाई) पकड़ लो साथ ही चेतावनी देकर कहा जाता अन्त में ध्यान रखना पर हमारा ध्यान तो आसमान मे उड़ती रंगबिरंगी पतंगों पर होता था सो आगे क्या होता होगा ये तो आप सब समझ ही गये होगे 🙈

काश कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन…………..