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श्री कृष्ण जन्माष्टमी

बचपन की यादें सचमुच अनमोल होती हैं कोई भी त्यौहार हो अपने बचपन में लौट जाती हूँ ………………… जन्माष्टमी हमारे यहाँ बडे धूमधाम से मनाते थे पन्द्रह दिन पहले से ही खरबूजे की बीया को छिलना जहां नानी व अम्मा का पसंदीदा काम था वहीं हम सब भी दो चार दाने छीलकर ही अम्मा नानी पर बहोत बडा एहसान जताते हुए स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते ।भाई साहब का काले पत्थरों से पहाड़ बनाना, पहाड़ की चोटी पर शिव जी बैठानाऔर रूई से गंगा माँ की धारा कों दिखाना ,बुरादों से बनी आकृतियों पर खिलौनों की सजावट जो एक छोटी सी बकसिया जो साल में केवल एक बार खुलती उससे छोटे-छोटे खिलौने जो लकड़ी या मिट्टी से बने होते उन्हें निकाल कर सजाये जाते थे । लाल,पीले,हरे ,नीले रंगों के कपडे पहने ये खिलौने आज के कितने ही मँहगे खिलौनों से ज्यादा प्रिय होते थे ।
खाकी वर्दी पहने पुलिस के जवान जेल,यशोदा,देवकी,बासुदेव नन्द जैसे पात्रो से झांकी सजाने के बाद सब ऐसे खुश होते जैसे कुतुबमीनार या ताजमहल का निर्माण कर लिया हो ।कदम्ब की डाल के नीचे कृष्ण को खडा करना,केले के पत्तों से खम्भों को बांधना ,अशोक के पेड़ की पत्तियों से बंदनवार बनाना कितनी ही मधुर यादें .आज भी व्यथित कर देती है …
आज अम्मा बहुत याद आई उनका भगवान को सजाना जिसमें आम की खटाई ,नींबू से भगवान को साफ करना ,अपने हाथों से सिले कपडे पहनाकर,नेत्र ,मुकुट,वंशी लगाना और सजाने के बाद भगवान को यूँ मुस्कुराकर निहारना जैसे माँ बच्चों को तैयार करने के बाद बलैया लेती है वैसी ही लगती अम्मा 😊 “,पंजीरी ,सोंठ के लड्डू ,कतरी ,पंचामृत और भी ढेर सारा प्रसाद में जाने क्या-क्या बनाना जिसकी खुशबू पूजा में लगने वाले समय को और लम्बा महसूस कराती 😄😄😄😄
फिर शाम छ बजे के बाद आस पास की औरतें आती ढोलक पर थाप लगती तो आस पास के लोग भी सजग हो जाते गोकुला में बाजे बधईया…..से शुरू होकर,जच्चा-बच्चा,सोहर कजरी से लेकर अनेक फिल्मों के गीत भी गा लिए जाते अन्ततः नृत्य पर महिला संगीत का समापन होता था ।डॉ भारती चाचा जी और पास के मंदिर में कजली के दंगल होते चारों तरफ हर्ष व उल्लास का वातावरण होता था जो अद्भुत था । वोअपनत्व,लगाव,Involvement अब कहाँ ………….बार-बार ढूंढ़ती हूँ उस बचपन को जो जाने कहाँ चला गया …. काश कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन 😔