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वैश्विक सौहार्द में सहायक संगीत

अमूर्त रूप संगीत व्यापक रूप से शब्द ब्रह्म एवं नाद ब्रह्म की अनुभूति व अभिव्यक्रि की विधा है ईश्वरीय सुन्दरम् सृष्टि की मधुरतम् अभिव्यक्रि संगीत है नाद भौतिकीय व्याख्या से परे एवं स्वयं ब्रह्म स्वरूप सृ्ष्टि का आदि और अंत है। नाद से वर्ण, वर्ण से पद, पद से वाणी की अभिव्यक्ति होती है जिसके की अन्तर्गत सम्पूर्ण विश्व है नादाधीनमिदं जगत यह सृष्टि नाद ब्रह्म का ही परिणाम है। संगीत आन्नद प्रमोद की अपेक्षा अर्चना तथा मोक्ष का सहज मार्ग है और यही दृष्टि भेद उसे अन्य देशों के संगीत से अलग करता है।
हमारे संगीत के नाद, काल,वाक,भाव,विभाव,अनुभाव,संचारी भाव समस्त विश्व के संगीतानुरागियों के ह्रदय में स्थित है सप्र स्वर स्वन्दन समस्त सृष्टि का आधार है अत विश्वव्यापी है जो समस्त विश्व के संगीतानुरागियों को साधारणीकृत कर लेता है। विभाव अनुभाव संचारी भाव समस्त विश्व के संगीतानुरागियों के ह्रदय में स्थित है सप्र स्वर स्वन्दन समस्त सृष्टि का आधार है अत: विश्वव्यापी है जो समस्त विश्व के संगीतानुरागियों को साधारणीकृत कर लेता है।
भाव,राग,ताल है जो लय पर निर्मित थुने विश्वव्यापी है मानव मात्र के ह्रदय में इन तत्वों का समावेश है सम्प स्वर विश्व में मान्य है जो लय के साथ जुड़कर अनुरणन युक्त होकर समस्त सृष्टि को स्पन्दित करने का सामथर्य रखते है। मानव तो वैसे भी संवेदनशील है जिसमें भाव सम्प्रेषण हेतु भाषा की अपेक्षा ध्वनि, लय और आघात के समुचित प्रयोग की अपेक्षा है जो व्यंजना वृत्रि को प्राप्त कर भावानुभूति कराती है किसी भी भाषा में गान या वादन किया जाए मानव ह्रदय ग्रहज मात्र भावों का ही करता है अगर एक जानवर के मुख से उच्चारित ध्वनि से हम उसकी भावनाओं को समझ सकते है तो मनुष्य द्वारा प्रदर्शित भावों को समझाना और आसान हो जाता है और जहां भाव सम्प्रेषण हो गया वहाँ किसी पार्थक्य की संभावना ही नहीं अत: सुरो लयो को मिलाकर जो समरजता प्रदान की है वो देश काल का परिधि से निकल विश्वव्यापी हो गया है। भारतीय संगीत सृष्टि के उद्गम के साथ ही विश्व की अनेकानेक गतिविधियों में समाहित है संगीत ऐसी जीवनधारा है जो समस्त चर-अचर में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विद्यान मानव के भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से साधना का विषय रहा है
भारतीय जनमानस आध्यात्मिक भावना से ओतप्रोत है जो नाद ब्रह्म एंव धर्म की अभिव्यंजना से अनुप्राणित है तथा भारतीय संस्कृति का आध्यात्मिक चिंतन व्यष्टिगत न होकर समष्टिगत खोज है संगीतकार विशिष्ट आध्यात्मिक भावना से सुरों के माध्यम भावप्रपण जिस कला आकाश की संरचना करता है वह सभी को आकर्षित करती है। हमारे शास्त्रीयसंगीतज्ञ लोकसंगीत फिल्मी गायकों से यह प्रमाणित कर दिखाया है।
ऐतिहासिक दृष्टि से देखे तो ब्रिटिश शासन काल से ही विद्वानों ने जब भारतीय दर्शन में रूचि ली तो संगीत भी नही रहा कैप्टन एन. आगस्ट विलर्ड ने म्यूजिक आँफ हिंदुस्तान में भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को सहेजा संगीत के शाश्वत स्वरूप को विश्व के सम्मुख लोक का प्रयास किया है।
बड़ौदा के सूफी संत हजंरत इनायत खाँ ने इस क्षेत्र में काफी कार्य किया भारतीय संगीत पशिर्यन, अरेबिक, पाश्चात्य सभी की जड़ो में सन्निहित है। भाव ताल लय के आधार पर जो घुनों का निर्मीक हुआ है वो विश्वव्यापी है भारतीय संगीत में पाश्चात्य संगीत के समावेश कर निर्मित सांगीतिक रचना का प्रारम्भिक परिचय हमें बीज रविंद्र संगीत से मिलता है रविंद्र संगीत में शास्त्रीय संगीत लोक संगीत सुगम संगीत के साथ ही पाश्चात्य संगीत का भी समावेश है और यही से संगीत सद्भावना प्रायोगिक रूप से बीज रूप में दिखाई दती है।
कालांतर में लगभग 1925 से पं. रविशंकर जी ने यहुदी मेनन, के साथ मिलकर अनेक सांगीतिक रचनाओं की सृष्टि की आंद्रे ग्रेविन्स के निर्देशन में पं. रविशंकर जी ने सिम्फनी आर्केष्टा के साथ राग खमाज, सिंधु भैरवी, अड़ाना, मांझू खमाज आदि रागों में गुनों का निर्मीक किया।
स्फाँर हाऊजन, स्त्राविस्की, जाँन क्रेज आदि ने उपज जैसे कुछ नवीन प्रयोग किे जूलीयन ब्रीम जैसे गिरार वादक ने अली अकबर खाँ के साथ मिलकर रचनायें की। आँलिवर मेसियन, बेजामिन ब्रिटन, आदि के साथ मिलकर पं. रविशंकर, बी जी जोग, अमजद अली खाँ जाकिर हुसैन ने अनेक संगीत संरचना की। एम. एस. सुबुलक्ष्मी, डागर ब्रदर्ज के साथ कठ्ठ संगीत भी वाँयलिन, गिटार, की बोर्ड को हम लोगों ने अपना लिया।
भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद, संगीत नाटक एकेडमी ने इस दिशा में अनेक कदम बढ़ाये है अनेक संगीत विद्यालयों की स्थापना, अनेक गुरूओं को विदेशों में भेजकर संगीत शिक्षा प्रदान कराना, संगीत महोत्सवों का आयोजन, अनेक देशों के सभागारों में शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे है SPIC-MA CAY, P.S.S. जैसी संस्थाओं ने भी वैश्विक स्तर पर संगीत को सहज सुलभ कराया है लाईव प्रोग्राम, सी.डी., डी.वी.डी, यूट्यूब आदि के माध्यम से हम किसी देश के किसी भी कलाकार को सहज रूप से सुन सकते है। Distance education से भी संगीत शिक्षण प्रदान कर सांस्कृतिक सद्भाव को प्रस्तार दिया जाता है, ई-मेल, आँन लाईन चैटिंग, वीडियो कान्फ्रैसिंग, ऐजूसेंट एवं व्यवसाय हेतु ई.कामर्स के प्रयोग से सांस्कृतिक सोहार्द में वृद्धि हो रही है। वेब साईटस से कलाकारों व उनसे जुड़ी वृस्तृत जानकारी, विषय वस्तु का ज्ञान प्राप्त होता है। विकीपीडीया से विषयों का वृस्तृत ज्ञान सहज रूप से ही प्राप्त कर लेते है साथ ही संगीत विषय पर लिखे जा रहे 1285 ब्लाग से वैश्विकस्तर पर विचारो का आदान प्रदान, शंकाओं का निस्तारक नवीन विचारों का संकलन प्राप्त होता है।
वर्तमान समय में पं. विश्वमोहन भट्ट कु. अमजद अली पं. भजन सोपोरी अभय सोपोरी, जाकिर हुसैन, रोनू मजूमदार जी ऐसे अनेक संगीतज्ञ है जो विदेशी संगीतों के साथ मिलकर संगीत संरचना कर रहे है और इसके माध्यम से सद्भाव की जड़ो को मजबूती प्रदान कर रहे है।
संगीत की भाषा सार्वभौमिक है किसी देश, काल, स्थिति, परिस्थिति से ये प्रभावित नही होती हम बाक्, वितोवेन, मोजोर की रचनाओं का आन्नद लेते है माईकल जैक्सन के वाँयस माड्यूलेशन पूर्व गायकी यदि दिवाने है बड़े गुलाम अली खाँ, फैय्याज खाँ, बिसम्मिला खाँ, अली अकबर, मो. रफी, किशोर, मुकेश, लता, आशा शंकर जयकिशन, सौशाद, खय्याम, ए. आर. रहमान, के गीतों के दिवाने पूरे विश्व में है। कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी, कुचिपुड़ी ने जहाँ विदेशीयों को आक्रषित किया है लमबो, वार्न डांस, ब्रेक डांस, कोंगा डांस, पोला डांस, वैली डाँस, ट्वीस्ट, सालसा आदि ने भारतीय सुगम नृत्य विधा को एक नवीन मोड़ दे दिया है फिल्मी नृत्यों में तथा रियलिटी शोज में आप इन्हे प्रचूर मात्रा में देख सकते है मारिया डेलमर फर्नाडीज जैसी स्पेन की गायिका भारतीय फिल्मों में गा रही है तो लता, आशा ने अनेक देशों के गीतों में अपना स्वर दिया है।
ग्लोबलाईजेशन, भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण का सामान्य सा अर्थ है विश्व मे चारो ओर अर्थ व्यवस्थाओं का बढ़ता हुआ एकीकरण। यजुर्वेद में कहा गया है आ नो बद्रा क्रतवो यंतु विश्वत अर्थात हे परमप्रकाशक परमात्मा काल से ही वसुधैव कुटुम्बकम की विचार धारा भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रही वैश्वीकरण के आधुनिक परिवेश में संगीत की विश्व की सांस्कृतिक व सामाजिक एकता में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
संगीत भारतीय, पाश्चात्य एवं प्रात्य कोई भी हो सुर सात ही है ग्लोबल म्युजि़क का आधार शास्त्रीय संगीत है प्रत्येक देश का लोक संगीत व शास्त्रीय संगीत में नोटेसज, मेलाँडी, हार्मनी, सिम्फनी स्वापाद्य परक शन्स आदि का प्रयोग होता है किंतु वैश्वीकरव के इस दौर में बाजार में खुलापन आया है मार्केटिंग महरव रखने लगी है साधकों की गुणवत्ता का आंकलन मीडिया पार्टनर पर निर्भर होता जा रहा है जिस ग्लोबल म्युजिक की चर्चा हो रही है उसका उत्पाद प्रकाशन, वितरण संगीत सम्बन्धित उद्योगों से होता है वैश्विक स्तर पर सोनी, युनिवर्सल ई.एम.आई, बी.एम.जी और बार्नर संगीत का वितरक कर रही है उनमें 79% फ्युजन संगीत होता है मौलिक संगीत है। जिसमें शास्त्रीय सुगम, लोक संगीत का फ्युजन तैयार किये जा रहे है। भाँगड़ा, कव्वाली, सूफी हिंदी रैप, हिंदी रेगें विदेशों में लोकप्रिय है स्टीपन कपूर यानी अपायी इण्यिन ने जमैका के कैरेबियन संगीत, रैग्गे मूफीन और पंजाब के भाँगड़ा को मिलाकर भाँगड़ा रैग्गे बनाया है वो लोक प्रिय तो है किंतु उसमे मौलिकता का जो हास हो रहा है। उस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
पुराने फिल्मी गीतों के साथ पाश्चात्य संगीत के मेल से तैयार गीतों का सोंधी महक, माधूर्य कहीं खो गया। Art Music, experimental music music- critic, new age music आदि शैलीयों या विचार धाराये आज विश्व में प्रयलित है। किंतु इसमें संगीत कला के साथ की जा रही छेड़छाड़ का मानक निर्धारित होना आवश्यक है।

हमें इस पर गहन चिंतन की आवश्यकता है आज विदेशी हमारे संगीत के किस स्वरूप पर रीझते है क्या हम जिस अंधी दौ़ड़ में शामिल हो रहे है उस संगीत का आन्नद प्राप्त करने वो भारत आते है वो तो उन के यहाँ भरा पड़ा है वो हमारे संगीत के माध्यम से शान्ति की खोज मे आते है तो संगीत का मूलरूप है वो इसके आध्यात्मिक स्वरूप के कारण जुड़ते है वो रागों के इम्प्रूवाईजेशन से आकृष्ट होते है क्योंकि उनके यहाँ पूरा पैक्ड है और हमारा संगीत तो प्रतिक्षण नवीन है एक ही कलाकार अगर दस बार एक ही राग को प्रस्तुत करता है तो वो भिन्न होगा। वो स्वर शाक्ति से प्रभावित हो रोते है, आन्नदित होते है स्वरों में डूबना चाहते है तो आवश्यकता है हमें उस संगीत के प्रस्तुति की जिसमें दर्शन, अध्यात्म और संगीत के शाश्वत पवित्र रूप से विश्व गुरू की श्रेष्टता प्रदान की है