आमूर्त कला चिन्तन परम्परा में संगीत सर्वोपरी स्थान रखता है, अध्यात्म, दर्शन से अनुप्राणित संगीत कला भारत की विश्वगुरू रूप में स्थापित करती है वह वैदिक संगीत हो, श्लिष्ट संगीत हो या लोक विधा। संगीत की ऋषि परम्परा वैदिक काल से ही स्वान्तः सुखाय से सर्वजन हिताय का लक्ष्य रखती है कला साधक साधना में तल्लीन सत्वगुण को जागृत करके स्वयं को परिमार्जित कर आनन्दानुभूति प्राप्त करता है तत्पश्चात् वह अपनी कला से सुधि श्रोताओं दर्शकों को आनन्दित करता है ये हर काल, परिस्थिति में हुआ है। वैदिक काल से वर्तमान काल तक अनेक प्राकृतिक, राजनैतिक आपदाओं, झंझावातों के पश्चात् भी ये कला अडिग रही है, साधक अपनी साधना में निरन्तर मग्न रहे हैं कभी मुखर होकर तो कभी आत्मकेन्द्रित करके। इसी प्रकार देखा जाए तो कोरोना काल में सभी कला सेवियों ने अपनी कला को साधकर स्वान्तः सुखाय प्राप्त किया और फिर सर्वजन हिताय केा ध्यान में रखते हुए अपनी कला के माध्यम से लोगों केा तनाव से मुक्ति पाने में सहयोग किया है।
अनेक संगीतकारों ने संगीत के साहित्य, धर्म, अध्यात्म, दर्शन के विषय पर चर्चा परिचर्चा करना शुरू किया। ये चर्चाएँ जहाँ विद्यार्थियों के लिए हितकर हुई वहीं वरिष्ट संगीत सेवियों के चिन्तन को नई दिशा दी। अनेक संस्थाओं ने भी इसका दायित्व उठाया संगीत नाटक अकादमी, आई0जी0एन0सी0, संस्कार भारती, सा0म0प0 (सोपोरी अकादमी आॅफ म्यूूजिक एण्ड परफाॅरमिंग आट््र्स), स्पिक मैके, काशी हिन्दु विश्वविद्यालय, राजा मान सिंह तोमर विश्वविद्यालय, काशी विरासत फाउंडेशन, सम (सोसायटी फाॅर एक्शन थ्रू म्यूजिक), रामरंग समिति, काशी लोक संगीत संस्थान, संस्कृति विभाग, व्यंजना आर्ट एण्ड कल्चर सोसायटी, पं0 विदुर मलिक संगीत संस्थान, जश्न-ए-मौशिकी, जश्न-ए-अदब आदि ने अनेक कलाकारों से संवाद स्थापित कर तथा अनेक विषयों का परिचर्चा, संवाद एंव वैबिनार का आयोजन कर आम विद्यार्थियों एवं कला सेवियों को लाभान्वित किया। विश्वविद्यालय तथा उनसे सम्बद्ध शिक्षकों ने भी अनेक कार्यक्रम तथा वैबिनार आदि आयोजित कर संगीत के विषयों को विद्यार्थियों के समक्ष देश के प्रतिष्ठित चिन्तकों, विचारकों के विचारों से परिचित कराया। अनेक कलाकारों जैसे- डा0 सोनल मान सिंह, विदुषी मालनी अवस्थी, डा0 गीता चन्द्रन, श्री प्रशान्त निशान्त मलिक, विदुषी कविता द्विवेद्वी, विदुषी ऋचा शर्मा, श्री सुनील मिश्र, श्री यतीन्द्र मिश्र, पं0 विजय शंकर मिश्र आदि ने अपने फेसबुक और इंस्टाग्राम पेज के माध्यम से दर्शकों से सीधा संवाद स्थापित किया जिसमें दर्शक हर विषय से जुड़कर प्रश्न उत्तर कर अपनी जिज्ञासाओं को शान्त करते थे और ये कलाकार अत्यन्त रोचक ढं़ग से वाद- संवाद करते रहे इसके माध्यम से कलाकारों ने अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का भी सुन्दर निर्वहन किया। लाईव कार्यक्रम में कलाकार के समक्ष अनेक समस्याएँ भी उपजी नेटवर्क की समस्या या गर्मी में गाना बजाना क्यूँकि प्रस्तुति के समय पंखा, ए0सी0 से अवरोध होता था तो कलाकार पसीने बहाता प्रस्तुति दे रहा था। समस्या दर्शकोें का सामने न होना भी था, खुद को देखकर गाना विचित्र सा लग रहा था क्योंकि श्रोताओं की आह, वाह व तालियाँ कलाकार को उत्साहित करती हैं किन्तु यहाँ संगतकार का न होना भी उदासीनता का कारण था क्यूंकी संगत से गायन-वादन में रसवत्ता आ जाती है तो वह अकेले प्रस्तुति देना कभी-कभी उबाऊ हो जाता है किन्तु प्रयोग चल रहे हैं कलाकार गा, बजा, नृत्य कर रहे हैं।
अब संगीत शिक्षण की ओर आते हैं तो संगीत कला तो हमेशा ही पारम्परिक स्वरूप के साथ प्रयोग धर्मी रही है यद्यपि सीना-ब-सीना तालीम हमारी परम्परा रही है फिर भी काल के करवट को हम पहचानते हैं तो संगीत शिक्षा यू-ट्यूब के माध्यम से हो, स्काईप, जूम, गुगल मीट के माध्यम से हो या वाट्सअप के माध्यम से चलती रहनी चाहिए। गुणवत्ता के बारे मंे हम सामान्य स्थितियों में सोचेंगे किन्तु विद्यार्थी को शिक्षा देने के प्रयास हो रहे हैं। अब इस विषय को दूसरी दृष्टि से देखें तो कोरोना काल व संगीत- बड़ा व्यथित करने वाला पक्ष है कि वैश्विक आपदा है, महामारी है चारों तरफ एक डर सा व्याप्त है और उसमें संगीत, इस समय में लोगों से चर्चा के दौरान आयी हुई बात के आधार पर कुछ तथ्य सामने आये कुछ लोगों ने कहा ये तो रोने का समय है क्या लोग गा बजा रहे हैं जिसे देखो कलाकार बना है, लाईव शो कर रहा है एक क्षण को लगा कि सही तो कह रहे हैं व्यथा का समय तो है ही पर दूसरे क्षण दूसरे पक्ष से सोचा तो कला तो विपरीत परिस्थतियों में भी उपजती है, बाल्मीकि के शब्द याद आये-
मा निषाद प्रतिष्ठा त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
और ये भावना हमारे संगीतज्ञों के मन में रही कि संगीत के माध्यम से समाज सेवा करें अतः कलाकारों ने अपनी कलाओं के माध्यम से जनमनरंजन किया है, ये सारी बातें हुई आर्थिक रूप से समर्थ कलाकारों की किन्तु इसका एक पक्ष और दिखता है वो कलाकार जो मंच प्रस्तुति के माध्यम से ही अर्थाेपार्जन करते हैं वो मंच न मिलने के कारण भुखमरी के कगार पर आ गये हैं उनके ट्यूशन और संगत के अवसर भी बाधित है लोक कलाकारों की स्थिति और भी अधिक दयनीय है ढोलक वाले, मंजीरा, जागरण वाले कलाकार, झांकी वाले कलाकार, नौटंकी, खेल, तमाशा दिखाने वाले कलाकार आर्थिक रूप से बुरी तरह प्रभावित हैं यद्यपि अनेक संस्थाओं ने उन्हें कुछ मदद पहुँचाने का संकल्प उठाया है कुछ समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए आर्थिक सहायता देने का प्रयास किया है सरकारी संस्थाओं से उनकी लम्बी सूची ली गयी है किन्तु अभी तक कोई भी आर्थिक मदद मिलती नहीं दिखी कलाकार तनावग्रस्त हो रहे हैं उनके समक्ष विकट समस्या है और वो मजबूरीवश छोटे-मोटे काम करके जीविकोपार्जन कर रहे हैं सभी को इनकी सहायता के उपक्रम की आवश्यकता है, सरकारी संस्थाएं व्यापक रूप से तथा त्वरित गति से इनको मंच प्रदान कर इनको आर्थिक संरक्षण दें शिक्षण संस्थओं तथा एन. जी. ओ. को भी इस दिशा में भी कदम उठाएं अन्यथा अपनी सांस्कृतिक विरासत को सम्भालने, सहेजने वाले कलाओं से विमुख हो जाएंगे, हमारी थाती माटी की सोंधी महक को सम्भालने एवं सहेजने के लिए हमें एकजुट हो प्रयास करना है क्यूंकी आपदा आयी है तो चली जाएगी किन्तु अपनी धरोहर को हम खो देंगे, ईश्वर उनके मनोबल को बनाए रखे, निश्चित रूप से ऐसे कलाकारों के लिए ये अत्यन्त चुनौतीपूर्ण समय है जिसका वो डटकर मुकाबला कर रहे हैं ऐसे कलाकारों के लिए कुँवर बेचैन साहब की चन्द लाईने समर्पित हैं-
वौ दौड़ा आ रहा है सामने से बाढ़ का पानी,
मैं पेड़ हूँ मेरा मुकद्दर है खड़े रहना।
कोई इस पेड़ से सीखे मुसीबत में अड़े रहना,
जो बाढ़ के पानी में भी सीखे हैं खडे़ रहना।।